- बैकुंठ चतुर्दशी मेले की तीसरी संध्या में नाट्य प्रस्तुति, नृत्य और गढ़वाली कविताओं का संगम
- सांस्कृतिक धरोहर, लोकभाषा और पौराणिक कथा से सजी श्रीनगर की यादगार शाम
बैकुंठ चतुर्दशी मेले की तीसरी संध्या इस वर्ष सांस्कृतिक रंगों से सराबोर रही। मंच पर जहां एक ओर ‘गैंडा वध’ का पौराणिक नाट्य-प्रदर्शन हुआ।
वहीं नटराज डांस ग्रुप की आकर्षक प्रस्तुतियों और गढ़वाली कवि सम्मेलन ने पूरे पंडाल में उत्साह और उमंग भर दी। संध्या का आयोजन पारंपरिक लोककला, नृत्य और भाषा को समर्पित रहा।
कुलपति और जिला पंचायत अध्यक्ष ने की सराहना
कार्यक्रम का शुभारंभ गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्री प्रकाश सिंह और जिला पंचायत अध्यक्ष पौड़ी रचना बुटोला ने संयुक्त रूप से किया।
मेयर आरती भंडारी ने दोनों अतिथियों का स्वागत किया और मेले की रूपरेखा पर प्रकाश डाला।
मुख्य अतिथियों ने कहा कि ऐसे आयोजन हमारी सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखने के साथ नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

‘गैंडा वध’ नाट्य मंचन ने दिखाया पौराणिक युग का जीवंत रूप
संध्या की सबसे बड़ी आकर्षण रही ‘गैंडा वध’ की नाट्य प्रस्तुति, जिसका मंचन “बच्छणस्यूं मंडान” समूह ने किया।
कथा पांडवों के उस प्रसंग पर आधारित थी, जिसमें वे अपने पिता पांडू के श्राद्ध हेतु गैंडे की खाल प्राप्त करने निकलते हैं। नाटक ने दर्शकों को मानो पौराणिक काल में पहुँचा दिया। नाट्य निर्देशन अंकित रावत और जसपाल गुसाईं ने किया।
- अर्जुन की भूमिका -लखपत राणा
- नागार्जुन- ऋतिक
- भीम- आशुतोष रौथान
कलाकारों की संवाद शैली, अभिनय और भावाभिव्यक्ति को दर्शकों ने खूब सराहा। तालियों की गड़गड़ाहट ने मंच को कई बार गूंजा दिया।
नटराज डांस ग्रुप की प्रस्तुति ने संध्या में भरा उल्लास
“नटराज डांस ग्रुप, श्रीनगर गढ़वाल” ने आकर्षक नृत्य प्रस्तुतियाँ दीं। उनकी शानदार लय, ताल और सामूहिक समन्वय ने मेले को और भी जीवंत बना दिया। दर्शकों ने हर प्रस्तुति पर उत्साह से तालियाँ बजाईं।

गढ़वाली कवि सम्मेलन में गूँजी लोकभाषा
सांस्कृतिक संध्या का सबसे भावनात्मक और साहित्यिक हिस्सा रहा गढ़वाली कवि सम्मेलन, जिसमें प्रदेशभर से आए कवियों ने अपनी ओजस्वी और भावपूर्ण रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम का संचालन कवि ओमप्रकाश सेमवाल (रुद्रप्रयाग) ने किया, जिन्होंने “त्वे मा नव निर्माण का हुनर छन” जैसी प्रभावशाली कविता से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई।
श्रीनगर की कवयित्री अनुसुईया बडोनी ‘अंशी कमल’ ने सरस्वती वंदना और “चल त्वे तैं मि सैर करौलु अपणा गढ़-कुमाऊ कि” गीत से कार्यक्रम में लोकभाषा की मधुरता घोल दी।
संयोजक संदीप रावत ने “जब खुलदन कैकि जिंदगी का पन्ना” और गढ़वाली ग़ज़ल “त्वे मिलणा कु जिंदगी तरसदि रै” से दर्शकों का दिल जीत लिया।
कर्णप्रयाग के जय विशाल गढ़देशी ने प्रेम की कोमल भावनाओं पर आधारित कविता प्रस्तुत की।
रुद्रप्रयाग की जगदम्बा चमोला ने बचपन की यादों में ले जाने वाली रचना “बचपन का दिन बि कन छा” सुनाकर भावनाएँ जगा दीं।
नागनाथ पोखरी के मुरली दीवान ने दार्शनिक कविता “मि स्थिर छौं कि गरिमान छौं कि गतिमान छौं” सुनाई।
ऋषिकेश के नरेन्द्र रयाल ने विकास और शिक्षा पर व्यंग्य करते हुए समसामयिक मुद्दे उठाए।
श्रीनगर के साइनी कृष्ण उनियाल ने जीवन की नश्वरता पर आधारित गहन कविता पढ़ी।

गुप्तकाशी की उपासना सेमवाल ने बेटियों और शिक्षा पर आधारित प्रभावशाली कविता से सबको प्रभावित किया। श्रीनगर की अनीता काला ने “माटी चंदन, धरती स्वर्ग समान” से मातृभूमि का गौरव बढ़ाया।
अगस्त्यमुनि की कुसुम भट्ट ने आधुनिकता की अंधी दौड़ पर तीखा व्यंग्य प्रस्तुत किया।
बैकुंठ चतुर्दशी मेले की तीसरी संध्या ने एक बार फिर साबित कर दिया कि श्रीनगर की सांस्कृतिक परंपरा केवल इतिहास नहीं, बल्कि एक जीवंत धरोहर है।
नाट्य मंचन, नृत्य, लोककविता, भाषा और कला का अनूठा संगम इस संध्या को यादगार बनाता है।
इस मौके पर नगर आयुक्त नूपुर वर्मा, नगर निगम के पार्षदगण और शहर कोतवाल जे.एस. नेगी समेत कई दर्शक गण उपस्थित रहे।












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