उत्तराखंड हाईकोर्ट ने UGC और अन्य को जारी किया नोटिस
गंगा असनोडा
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल) के कुलपति (Vice-Chancellor) के रूप में प्रो. श्री प्रकाश सिंह की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) सहित अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की खंडपीठ ने प्रतिवादियों को चार सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
यह याचिका डॉ. नवीन प्रकाश नौटियाल द्वारा दायर की गई है, जिन्होंने अधिवक्ता अनुराग तिवारी (सुप्रीम कोर्ट) के माध्यम से अपनी दलीलें पेश कीं। याचिका में मुख्य रूप से यह आरोप लगाया गया है कि प्रो. श्री प्रकाश सिंह की नियुक्ति केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 और UGC विनियम, 2018 के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।
याचिका के मुख्य आधार
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में प्रो. सिंह की नियुक्ति को अवैध और मनमाना बताते हुए इसे रद्द (Quash) करने के लिए ‘सर्टियोरारी’ या ‘मैंडेमस’ जैसी उपयुक्त रिट जारी करने की मांग की है। याचिका में उठाए गए प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
- न्यूनतम अनुभव की अनिवार्यता का उल्लंघन
- याचिका में कहा गया है कि UGC विनियम, 2018 के विनियम 7.3 के अनुसार कुलपति पद के लिए किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में न्यूनतम दस वर्षों का अनुभव अनिवार्य है। यह नियुक्ति इस अनिवार्यता का उल्लंघन करती है।
- गैर-समकक्ष अनुभव
- यह तर्क दिया गया है कि प्रो. सिंह का भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) में ‘चेयर प्रोफेसर’ के रूप में अनुभव को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के समकक्ष नहीं माना जा सकता, क्योंकि IIPA न तो विश्वविद्यालय है और न ही UGC मानदंडों द्वारा शासित संस्था।
- विज्ञापन की शर्तों का उल्लंघन
- याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञापन में पात्रता को स्पष्ट रूप से “विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में 10 वर्ष” तक सीमित किया गया था। यह स्थापित विधि है कि चयन समिति चयन प्रक्रिया के बीच में पात्रता शर्तों को बदल या शिथिल नहीं कर सकती।
- समानता के अधिकार का उल्लंघन
- याचिका में दावा किया गया है कि यह मनमानी नियुक्ति शैक्षणिक संस्थानों की अखंडता में जनविश्वास को कमजोर करती है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 16 (सार्वजनिक नियोजन में अवसर की समानता) का उल्लंघन है।
न्यायालय का निर्देश
तथ्यों और दलीलों पर विचार करने के बाद, उत्तराखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए UGC और अन्य संबंधित प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर इस संवेदनशील मामले पर अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए कहा है। सभी पक्षों को अगले चार सप्ताह के भीतर न्यायालय के समक्ष अपना जवाब प्रस्तुत करना होगा।
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह मामला केवल एक व्यक्ति की नियुक्ति का नहीं, बल्कि मेरिट-आधारित नियुक्तियों की पवित्रता और सार्वजनिक पदों पर संवैधानिक सिद्धांतों के पालन का है। उच्च न्यायालय के नोटिस के बाद अब सभी की निगाहें प्रतिवादियों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले जवाबों पर टिकी हैं।
















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