बात सन् 1970 से शुरू करें और 2025 तक आयें तो कई किताबें लिखी जा चुकी हैं, यह पुस्तकें विस्तृत यात्रा हैं। इस यात्रा में सब से जुड़ाव और आत्मीयता का रास्ता ही लेखन के पुल से होकर गुज़रता है और वह होता है सबसे जुड़ने से।
मैं जो देखता हूँ, अनुभव करता हूँ, उसे विभिन्न विधाओं मे लिखता हूं, जीता हूँ, शामिल रहता हूँ। सही को सही कह पाने की साधना है।
कविता, जन गीत, उपन्यास, रंगमंच, कहानियाँ, लेख, संपादन, आत्मकथा में विविध रंग है। उत्तराखंड आन्दोलन में लिखे जन गीत मेरी इसी प्रक्रिया का परिणाम है।
लगभग पचास वर्षों से जो देखते रहे या लेखकीय प्रयास करते रहे उसी की परिणिति है ये जन गीत। नदी से संबंधित जनगीत भी मेरी इसी प्रतिबद्ध चेतना का परिणाम है। एक दिन में जुड़कर लेखन नहीं किया जाता है।
कविताएं अनुभव, अध्ययन और अनुभूतियों का भोगा हुआ यथार्थ है। इसमें मेरा पहला कविता संग्रह ‘थकती नहीं’, ‘बिना दरवाज़ो का समय’, ‘नदी’, ‘सींचेगी नींव’, ‘जनगीतों का वातावरण’, ‘अब तो सड़कों पर आओ’ आदि कविताये हों या कोरोना पर आधारित उपन्यास- ‘दृष्य’अदृष्य’ या ‘नानू की कहानी’ यह सभी मेरी निरंतर लेखन, अनुभव व चेतना का ही परिणाम हैं।
पांच खंडों मे ‘महान स्वतंत्रता सेनानी एवं राष्ट्रीय कवि श्रीराम शर्मा प्रेम’ पर संपादित पुस्तक महत्वपूर्ण हैं और ‘वाह रे बचपन’ मेरी एक अद्भुत पुस्तक सीरिज है जिसमें सात खंडों में अस्सी लोगों के बचपन के संस्मरण हैं। नुक्कड़ नाटक हो या राष्ट्रीय कवि सम्मेलन हो सभी में सक्रिय भागीदारी रही।
साप्ताहिक धर्मयुग, हिन्दुस्तान दिनमान, टाइंस, दैनिक जागरण, दैनिक हिन्दुस्तान, सारिका कादंबिनी, आजकल, दूरदर्शन, आकाशवाणी, नैनीताल समाचार, उत्तरा, युगवाणी, रीजनल रिपोर्टर, संडे मेल, संडे आब्जर्वर आदि में निरंतर लेख कहानी कवितायें छपती रहीं हैं।
ये है पचास वर्षों की साधना जो कि अनवरत क्रम में जारी हैं जिनमें कि अभी प्रकृति प्रेम की पांच सौ से ऊपर कवितायें और उपन्यास प्रकाशित होना शेष है। लेखन के इस कार्य में संघर्ष भी खूब अधिक किया इसके साथ ही लोगों की आत्मियता और स्वीकृति भरपूर मिली है।
