भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में कदम रखकर भारत के अंतरिक्ष अभियान को एक नई ऊंचाई दी है। वह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पहुंचने वाले देश के दूसरे और आईएसएस में कदम रखने वाले पहले भारतीय बने हैं।
शुक्ला अमेरिका की निजी अंतरिक्ष कंपनी एक्सिओम स्पेस के चौथे मिशन ‘एक्सिओम-4’ के तहत अंतरिक्ष गए हैं। उनके साथ हंगरी, पोलैंड और अमेरिका के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री भी इस यात्रा का हिस्सा हैं।
इस मिशन की कमान अनुभवी अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन के हाथों में है। वे चार बार अंतरिक्ष की यात्रा कर चुकी हैं और इस समय ‘एक्सिओम मिशन-4’ का नेतृत्व कर रही हैं।
अंतरिक्ष स्टेशन में गर्मजोशी से स्वागत
भारतीय समयानुसार गुरुवार शाम 5:44 बजे शुक्ला और उनके साथियों ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में प्रवेश किया। जैसे ही स्पेसएक्स का ‘क्रू ड्रैगन’ अंतरिक्ष स्टेशन के हार्मनी मॉड्यूल से जुड़ा, वहां पहले से मौजूद वैज्ञानिकों और यात्रियों ने पूरे दल का गर्मजोशी से स्वागत किया। गले मिलकर, हाथ मिलाकर और हर्षोल्लास के साथ उनका अभिनंदन हुआ।
शुक्ला का पहला संदेश
अंतरिक्ष स्टेशन से भारत को भेजे अपने पहले संदेश में शुभांशु शुक्ला ने कहा, वह सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण की स्थितियों में “एक बच्चे की तरह” रहना सीख रहे है और जब ड्रैगन अंतरिक्ष यान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ने की अपनी यात्रा में पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा था तो निर्वात में तैरना एक अद्भुत अनुभव था।
अपने अनुभव साझा करते हुए शुक्ला ने कहा कि बुधवार को एक्सिओम-4 मिशन के प्रक्षेपण से पहले 30 दिनों तक पृथक वास के दौरान बाहरी दुनिया से पूरी तरह दूर रहने के बाद मेरे दिमाग में केवल यही विचार आया था कि हमें बस जाने दिया जाए।
शुक्ला और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री फ्लोरिडा स्थित नासा के कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र से ड्रैगन अंतरिक्ष यान पर सवार होकर 14 दिन के लिए आईएसएस के लिए रवाना हुए थे। एक्सिओम-4 वाणिज्यिक मिशन के तहत फाल्कन 9 रॉकेट पर सवार हुए यह अंतरिक्ष यात्रियों के बृहस्पतिवार देर शाम पहुंच गए।
14 दिन का अनुसंधान मिशन
शुक्ला इस मिशन में पायलट की भूमिका निभा रहे हैं। यह यात्रा वैज्ञानिक अनुसंधानों से भरपूर होगी। आगामी 14 दिनों तक यह दल माइक्रोग्रैविटी, बायोलॉजी, इंसुलिन प्रबंधन, सेलुलर अध्ययन और तकनीकी परीक्षणों पर काम करेगा। एक्सिओम स्पेस का उद्देश्य पृथ्वी की कक्षा में एक स्थायी निजी अंतरिक्ष स्टेशन की नींव रखना है।
41 वर्षों बाद भारत का मान
शुक्ला ने राकेश शर्मा के बाद भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। 1984 में राकेश शर्मा ने जब ‘सोयूज़ टी-11’ के ज़रिए अंतरिक्ष की यात्रा की थी, तब से लेकर अब तक भारत ने इस क्षेत्र में कई तकनीकी सफलताएं प्राप्त कीं, परंतु कोई भारतीय दोबारा मानवयुक्त मिशन में शामिल नहीं हो सका।
