देशभर में होगा राष्ट्रीय ऑडिट, बदल सकती है उच्च शिक्षा की तस्वीर
डॉ. सुशील उपाध्याय
भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आने वाला है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में देश के सभी प्राइवेट और प्राइवेट डीम्ड विश्वविद्यालयों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक ऑडिट कराने का आदेश दिया है।
यह आदेश एक छात्रा की शिकायत के आधार पर दिया गया है,
जिसमें उसने एक प्राइवेट विश्वविद्यालय द्वारा उत्पीड़न की बात कही थी।
यह निर्णय इसलिए ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि:
- केंद्र सरकार के शिक्षा सचिव
- सभी राज्यों के मुख्य सचिव
- और यूजीसी के शीर्ष अधिकारी
को सीधे व्यक्तिगत जवाबदेही तय करते हुए शपथपत्र के साथ सत्यापित विवरण कोर्ट में देना होगा।
क्या है मुख्य समस्या
सुप्रीम कोर्ट का मूल प्रश्न यही है कि क्या प्राइवेट विश्वविद्यालय सामाजिक सेवा के उद्देश्य से चल रहे हैं?
या वे पूरी तरह व्यावसायिक (रेवेन्यू-ड्राइवेन) केंद्र बन चुके हैं?
भारत में कई विश्वविद्यालयों पर:
- मनमानी फीस
- कमजोर संरचना
- अपारदर्शी प्रवेश
- और कई मामलों में फर्जी डिग्री बेचने जैसे आरोप लगे हैं।
तीन श्रेणियों में बंटे भारत के प्राइवेट विश्वविद्यालय
1) उच्च गुणवत्ता वाली श्रेणी
- NAAC द्वारा शीर्ष ग्रेड
- NIRF टॉप-200 में स्थान
- लेकिन फीस बेहद ऊंची
- उदाहरण: देहरादून के एक प्राइवेट विश्वविद्यालय में B.Tech की वार्षिक फीस ₹7 लाख तक।
2) औसत गुणवत्ता वाले विश्वविद्यालय
- NAAC “B” ग्रेड के आसपास
- बेसिक सुविधाओं की कमी
- शिक्षा ठीक-ठाक पर सुधार आवश्यक
- डिग्री बिक्री जैसे आरोप नहीं
3) संदिग्ध और डिफॉल्टर विश्वविद्यालय
- पीएचडी पर रोक
- डिग्री बिक्री के आरोप
- कई ब्लैकलिस्टेड
- गतिविधियाँ नियमों के विपरीत
क्यों ज़रूरी है यह राष्ट्रीय ऑडिट
- बढ़ती फर्जी डिग्रियाँ
- बैक-डेट परीक्षा
- निर्धारित तिथि के बाद प्रवेश
- शिक्षकों की नकली या कम योग्य नियुक्तियाँ
- पीएचडी में भारी अनियमितताएँ
- गुणवत्ता और मानकों में गिरावट
यह ऑडिट सभी पहलुओं की संस्थागत जांच करेगा:
- फंडिंग और वित्तीय मॉडल
- शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया
- भौतिक संसाधन
- परीक्षा प्रणाली
- डिग्री रजिस्ट्रेशन और वितरण
सुप्रीम कोर्ट का आदेश महत्वपूर्ण
सरकार HECI (Higher Education Commission of India) बनाने की प्रक्रिया में है, जो:
- नियमन
- मूल्यांकन
- फंडिंग
- नीति निर्माण
सभी को एक प्लेटफ़ॉर्म में लाएगा। ऐसे समय में यह ऑडिट सिस्टम को साफ करने का बड़ा मौका है।
डॉ. सुशील उपाध्याय के सुझाव
1. राष्ट्र स्तरीय टास्क फोर्स का गठन
- शिक्षा नीति विशेषज्ञ
- वित्तीय प्रबंधन विशेषज्ञ
- तकनीकी विशेषज्ञ
- स्वतंत्र शैक्षणिक विश्लेषक
2. शिक्षकों की नियुक्ति पारदर्शी हो
- देशभर का एक केंद्रीय UGC पोर्टल
- केवल वहीं पंजीकृत योग्य उम्मीदवार भर्ती हों
- एक शिक्षक को दो संस्थानों में एक साथ नियुक्त दिखाने पर रोक
3. सभी प्रवेश राष्ट्रीय पोर्टल (Samarth) से हों
- बैक-डोर एडमिशन बंद
- निर्धारित समय के बाद प्रवेश असंभव
- परीक्षा व डिग्री प्रणाली पारदर्शी
4. पीएचडी में प्रवेश नियम कड़े हों
- केवल NET/SET/CSIR-NET/UGC-NET for PhD वाले छात्र ही प्रवेश पाएँ
- समानांतर पंजीकरण अनिवार्य
- शोध गंगा पर synopsis + thesis अपलोड बिना डिग्री मान्य न हो
5. नए विश्वविद्यालय खोलने पर कड़ा नियंत्रण
- जनसंख्या आधार नहीं
- संसाधन + गुणवत्ता अनिवार्य
- उत्तराखंड, सिक्किम जैसे छोटे राज्यों में बड़ी संख्या में निजी विश्वविद्यालयों पर चिंता
क्या भारत को वाकई इतने विश्वविद्यालय चाहिए?
देश में अभी:
- 1200+ विश्वविद्यालय
- हर साल बढ़ती संख्या
जबकि GER (Gross Enrollment Ratio) लक्ष्य के लिए यह संख्या पर्याप्त है।
इसलिए नई यूनिवर्सिटी खोलने पर “आवश्यकता-आकलन नीति” ज़रूरी है।


















Leave a Reply