“सेल्फ-रेगुलेशन नाकाफी”, यूजर-जनरेटेड कंटेंट पर केंद्र से गाइडलाइंस लाने को कहा
कॉमेडियन समय रैना से जुड़े शो “इंडियाज गॉट लेटेंट” विवाद के बाद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर फैल रहे आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है।
गुरुवार को हुई सुनवाई में अदालत ने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मौजूद अश्लील, भ्रामक और गैरकानूनी सामग्री समाज के लिए खतरा बन रही है और इसे अब हल्के में नहीं लिया जा सकता।
केंद्र सरकार को निर्देश: UGC के लिए नियम बनाए जाएं
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय को यूजर-जनरेटेड कंटेंट (UGC) के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा है।
अदालत ने माना कि मौजूदा सेल्फ-रेगुलेशन व्यवस्था न तो प्रभावी है और न ही भरोसेमंद।
कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस क्षेत्र में एक ऐसी संस्था बने जो:
- स्वतंत्र हो
- निष्पक्ष हो
- सरकार और कंटेंट क्रिएटर्स दोनों के प्रभाव से मुक्त हो
“कोई जवाबदेही नहीं”: CJI की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि समस्या सिर्फ अश्लील कंटेंट की नहीं, बल्कि UGC में पक्षपात और गलत नैरेटिव की भी है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कड़ा सवाल उठाया “अगर कोई अपने मोबाइल से चैनल बनाकर कुछ भी अपलोड कर सकता है और उसके लिए जवाबदेह नहीं है, तो यह सिस्टम कैसे चलेगा?”
सेल्फ-रेगुलेशन पर अदालत की नाराजगी
OTT प्लेटफॉर्म की तरफ से दलील दी गई कि वे पहले से डिजिटल एथिक्स कोड, एज-रेटिंग और शिकायत निवारण व्यवस्था का पालन कर रहे हैं।
लेकिन कोर्ट ने इस दावे को खारिज करते हुए पूछा “अगर सिस्टम इतना मजबूत है, तो उल्लंघन बार-बार क्यों हो रहा है?”
जजों ने कहा कि वही संगठन खुद की निगरानी करें यह सोच ही गलत है। इसलिए अब बाहरी और स्वतंत्र रेगुलेटर की जरूरत है।
पोस्ट वायरल हो जाए, तब कार्रवाई – यह सबसे बड़ी चिंता
जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने बड़ा सवाल उठाया “जब कोई आपत्तिजनक वीडियो लाखों व्यूज़ पा चुका हो, तब कार्रवाई का क्या मतलब रह जाता है?”
अदालत का मानना है कि कंटेंट हटने से पहले ही समाज पर उसका असर पड़ जाता है, और कानून की रफ्तार डिजिटल दुनिया से पीछे चल रही है।
आगे क्या होगा
कोर्ट ने सुझाव दिया है कि:
- सरकार पहले नियमों का ड्राफ्ट जारी करे
- आम लोगों से सुझाव आमंत्रित किए जाएं
- तकनीकी और कानूनी विशेषज्ञों की एक समिति बने
- उम्र सत्यापन जैसे उपायों को अनिवार्य किया जाए
इस मामले की अगली सुनवाई एक महीने बाद होगी।
OTT कंटेंट बन रहा है बार-बार विवाद का कारण
बीते कुछ वर्षों में कई डिजिटल शो और प्लेटफॉर्म विवादों में रहे हैं, क्योंकि उनमें:
- गाली-गलौज
- यौन दृश्य
- बिना चेतावनी संवेदनशील कंटेंट
- धार्मिक या सामाजिक भावनाओं को ठेस
- महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक संवाद
जैसी शिकायतें सामने आती रही हैं। इससे यह सवाल और मजबूत हो जाता है कि क्या डिजिटल प्लेटफॉर्म “अभिव्यक्ति की आज़ादी” के नाम पर हर सीमा पार कर सकते हैं?

















Leave a Reply