हिमालय की तलहटी में स्थित पवित्र बुग्यालों में इस वर्ष भी पारंपरिक ‘दाती त्योहार’ को उत्सवपूर्वक मनाया गया। यह त्योहार मुख्य रूप से उन भेड़पालकों द्वारा मनाया जाता है, जो गर्मियों के छह महीनों तक 12,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित हरे-भरे चारागाहों (बुग्यालों) में प्रवास करते हैं।
इस वर्ष यह उत्सव 6 और 7 अगस्त को रक्षाबंधन से पहले की घोषित तिथि पर मनाया गया।
दाती त्योहार: परंपरा, पूजा और वीरता का संगम
भेड़पालक बीरेन्द्र सिंह धिरवाण के अनुसार, दाती त्योहार के दिन वन देवियों, क्षेत्रपाल, पंचनाम देवी-देवताओं की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के उपरांत, एक अनोखी परंपरा के तहत भेड़ों-बकरियों के झुंड में “सेनापति” की नियुक्ति की जाती है। यह पद उस भेड़ को दिया जाता है जो झुंड के भीतर युद्ध में विजेता बनकर उभरती है।
त्योहार से पहले होता है अनुष्ठान
टिगरी बुग्याल में प्रवास कर रहे भेड़पालक प्रेम भट्ट बताते हैं कि दाती त्योहार केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक व सांस्कृतिक अनुष्ठान है। पर्व से पहले भेड़पालकों को खास व्रत और नियमों का पालन करना होता है। पूजा की विधियां युगों से चली आ रही पारंपरिक परंपरा पर आधारित हैं।
थौली बुग्याल में रह रहे इन्द्र सिंह नेगी ने बताया कि अत्यधिक ऊंचाई, मौसम की अनिश्चितता और संसाधनों की कमी के बावजूद भेड़पालक अपने बलबूते पर त्योहार को पूरे हर्षोल्लास से मनाते हैं।
रघुवीर सिंह नेगी के अनुसार, यह पर्व धार्मिक आस्था, वीरता, और जीवटता का प्रतीक है।
भेड़पालन और स्वरोजगार को बढ़ावा देने की जरूरत
बुरूवा ग्राम पंचायत के नवनिर्वाचित प्रधान मदन भट्ट का कहना है कि यदि राज्य सरकार और पशुपालन विभाग दाती त्योहार को संरक्षित और प्रोत्साहित करें, तो यह पर्व स्थानीय स्वरोजगार और पारंपरिक भेड़पालन व्यवसाय को नई दिशा दे सकता है।
उन्होंने सुझाव दिया कि दाती त्योहार को राजकीय पर्व का दर्जा मिलना चाहिए ताकि अधिक युवा इससे प्रेरित होकर पारंपरिक पेशों से जुड़ें।

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