पिथौरागढ़ की मासूम ‘नन्हीं परी’ गैंगरेप और हत्या मामले में उत्तराखंड सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दोषियों को कठोर दंड दिलाने का संकल्प दोहराया है।
इस मामले की पैरवी देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता करेंगे। सरकार का मानना है कि यह केवल एक बच्ची के न्याय का प्रश्न नहीं है, बल्कि पूरे उत्तराखंड की अस्मिता और सुरक्षा से जुड़ा विषय है।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि दोषियों को सख्त से सख्त सजा दिलाने में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।
परिजनों से मुलाकात, दिया भरोसा
जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी ने पीड़िता के परिजनों से मुलाकात कर उन्हें सरकार की गंभीरता और अब तक किए गए प्रयासों की जानकारी दी।
वहीं, एसडीएम सदर मंजीत सिंह और पुलिस उपाधीक्षक गोविंद बल्लभ जोशी ने भी घर जाकर माता-पिता को भरोसा दिलाया कि न्याय की इस लड़ाई में पूरा शासन-प्रशासन उनके साथ खड़ा है।
परिजनों ने भी सरकार के इस कदम पर संतोष जताया और न्याय मिलने की उम्मीद जताई।
क्या है मामला
नवंबर 2014 में पिथौरागढ़ की सात वर्षीय बच्ची काठगोदाम में एक रिश्तेदार के यहां शादी में आई थी। शादी के दौरान वह अचानक लापता हो गई। पांच दिन बाद उसका शव गौला नदी किनारे जंगल में मिला। जांच में दुष्कर्म और हत्या की पुष्टि हुई।
पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिनमें मुख्य आरोपी अख्तर अली को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, जबकि प्रेमपाल को पांच साल की सजा मिली थी।
आरोपियों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में मुख्य आरोपी अख्तर अली को बरी कर दिया।
इस फैसले के बाद पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया। सरकार ने इसी फैसले के खिलाफ अब पुनर्विचार याचिका दाखिल की है।
अख्तर अली की रिहाई के बाद उसके अधिवक्ता को सोशल मीडिया पर धमकियां मिलने लगीं। इस पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।
आईजी क्राइम नीलेश आनन्द भरणे ने कोर्ट को बताया कि अधिवक्ता को सुरक्षा मुहैया करा दी गई है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स को नोटिस भेजा गया है। कोर्ट ने प्लेटफॉर्म को इस मामले में पक्षकार बनाने का निर्देश दिया है।

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