पटवारियों की वरिष्ठता पर साफ निर्देश
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दो महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय सुनाए। पहला मामला यूकेएसएसएससी की सहायक शिक्षक (एलटी) भर्ती से जुड़ा था, जबकि दूसरा राजस्व उप-निरीक्षक (पटवारी) की वरिष्ठता विवाद से संबंधित था।
अदालत ने एक ओर एलटी भर्ती पर लगी रोक को हटाते हुए परीक्षा परिणाम जारी करने का रास्ता साफ किया, वहीं पटवारियों की वरिष्ठता को लेकर स्पष्ट किया कि इसका निर्धारण प्रशिक्षण के अंकों से नहीं, बल्कि वास्तविक नियुक्ति की तिथि से होगा।
एलटी भर्ती परीक्षा पर लगी रोक हटाई
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूकेएसएसएससी) ने 14 मार्च 2024 को सहायक शिक्षक (एलटी) के 1544 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था, जिसमें 786 पद गढ़वाल मंडल और 758 पद कुमाऊं मंडल के लिए निर्धारित थे। परीक्षा 18 अगस्त 2024 को हुई थी।
आरक्षण में कथित गड़बड़ी के आरोपों पर कुछ अभ्यर्थियों—गोपीचंद, अरशद अली, सुषमा रानी और शीतल चौहान—ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर दीं, जिसके बाद अदालत ने परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी थी।
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025 को न्यायालय ने सभी याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए रोक हटा दी और आयोग को निर्देश दिया कि कुछ याचिकाकर्ताओं से जुड़े पद फिलहाल रिक्त रखे जाएं।
उसी दिन न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने पटवारियों की वरिष्ठता को लेकर अहम फैसला सुनाया।
अदालत ने कहा कि वरिष्ठता का निर्धारण प्रशिक्षण परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर नहीं, बल्कि वास्तविक नियुक्ति की तारीख से किया जाएगा।
मुख्य याचिकाकर्ता अल्मोड़ा के मनीष कुमार ने दावा किया था कि उन्होंने प्रशिक्षण में अधिक अंक प्राप्त किए थे, इसलिए उन्हें वरिष्ठता सूची में ऊपर रखा जाए, लेकिन अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि प्रशिक्षण केवल पात्रता प्रदान करता है, नियुक्ति नहीं।
कोर्ट ने नियमों का दिया हवाला
राज्य सरकार ने अदालत में उत्तर प्रदेश पटवारी सेवा नियमावली, 1963 और उत्तराखंड सरकारी सेवक वरिष्ठता नियमावली, 2002 का हवाला दिया।
अदालत ने कहा कि वरिष्ठता का निर्धारण केवल “वास्तविक नियुक्ति आदेश की तिथि” से किया जा सकता है। यदि दो या अधिक व्यक्ति एक ही दिन नियुक्त हों, तभी प्रशिक्षण अंकों को आधार बनाया जाएगा
अदालत ने अल्मोड़ा जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि पटवारियों की लंबित अनंतिम वरिष्ठता सूची पर प्राप्त सभी आपत्तियों का निस्तारण कर तीन माह के भीतर अंतिम सूची जारी करें।
न्यायालय ने कहा कि चयन का मानदंड “वरिष्ठता, अनुपयुक्त को अस्वीकार करने के अधीन” रहेगा और अन्य सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं।
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