अब ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ हो सकता है नया नाम
केंद्र के प्रस्ताव पर सियासत तेज, विपक्ष ने बताया गैर-जरूरी और खर्चीला कदम
केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का नाम बदलने की तैयारी कर रही है।
सूत्रों के अनुसार, इस योजना को अब ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ के नाम से जाना जा सकता है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस संबंध में प्रस्ताव तैयार कर लिया है,
जिसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
सरकार का कहना है कि नाम परिवर्तन का उद्देश्य महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज दर्शन को
और सशक्त करना है।
हालांकि, यह भी स्पष्ट किया गया है कि योजना के मूल ढांचे में कोई बदलाव नहीं होगा।
ग्रामीण परिवारों को हर साल 100 दिन का गारंटीशुदा रोजगार पहले की तरह मिलता रहेगा।
विपक्ष का विरोध, खर्च पर उठाए सवाल
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने नाम बदलने की खबरों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने इसे गैर-जरूरी बताते हुए कहा कि इससे सरकारी संसाधनों की अनावश्यक बर्बादी होगी।
प्रियंका गांधी ने कहा कि योजना का नाम बदलने से सरकारी दफ्तरों, फाइलों,
दस्तावेजों और स्टेशनरी पर दोबारा खर्च करना पड़ेगा, जो जनता के पैसे की बर्बादी है।
शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी केंद्र सरकार की आलोचना की।
उन्होंने इसे जनता का ध्यान भटकाने वाला कदम बताया और कहा कि ऐसे फैसले हताशा में लिए जा रहे हैं।
उनके अनुसार, लोग इतिहास और महात्मा गांधी के योगदान को अच्छी तरह समझते हैं।
क्या है मनरेगा की अहमियत
मनरेगा की शुरुआत वर्ष 2005 में यूपीए सरकार के दौरान हुई थी।
आज इसे भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है।
यह योजना 25 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को आजीविका सुरक्षा देती है,
बेरोजगारी कम करती है और गांवों में सड़क, तालाब, जल संरक्षण और वनरोपण जैसी स्थायी संपत्तियां बनाती है।
वर्ष 2025-26 के बजट में मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है,
जो पिछले साल से करीब 10 प्रतिशत अधिक है।
विश्व बैंक ने भी इस योजना को ग्रामीण विकास का उत्कृष्ट उदाहरण बताया है।
कोरोना महामारी के दौरान इस योजना ने करोड़ों प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिया, हालांकि भुगतान में देरी और एफटीओ जैसी समस्याएं अब भी चुनौती बनी हुई हैं।
















Leave a Reply