सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 7 नवम्बर को सरकारी नौकरियों की चयन प्रक्रिया के नियमों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए भर्ती नियमों को बीच में नहीं बदला जा सकता है। ऐसा तब तक तो बिल्कुल नहीं कर सकते हैं, जब तक ऐसा निर्धारित न हो।
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सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फैसला सुनाया कि, पदों के लिए चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीच में नियमों को बदला नहीं जा सकता है, जब तक कि संबंधित नियम ऐसा करने की स्पष्ट अनुमति न दें।
बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा, ‘भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत उस विज्ञापन के जारी होने से होती है जिसमें आवेदनों के लिए आमंत्रण और रिक्तियों को भरने का आह्वान किया जाता है। भर्ती प्रक्रिया के प्रारंभ में अधिसूचित चयन सूची में शामिल होने के लिए पात्रता मानदंड को बीच में बदला नहीं जा सकता है, जब तक कि वर्तमान नियम इसकी अनुमति न दें या वह विज्ञापन, जो वर्तमान नियमों के विपरीत न हो, इसकी अनुमति न दे।’
पीठ ने कहा कि चयन नियम मनमाने नहीं होने चाहिए। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार होने चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने सर्वसम्मति से कहा कि पारदर्शिता और गैर-भेदभाव सार्वजनिक भर्ती प्रक्रिया की पहचान होनी चाहिए।
यह फैसला जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनाया। पीठ में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, पंकज मित्तल और मनोज मिश्रा शामिल थे।
मामले की सुनवाई जुलाई 2023 में पूरी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी नौकरी के लिए नियम भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद नहीं बदले जा सकते हैं।
कोर्ट ने अपने पुराने फैसले ‘के. मंजुश्री बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ (2008) को सही ठहराया। इस फैसले में कहा गया था कि भर्ती प्रक्रिया के नियम बीच में नहीं बदले जा सकते। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि चयन सूची में जगह मिलने से उम्मीदवार को रोजगार का पूर्ण अधिकार नहीं मिल जाता है।
जानें क्या था पूरा मामला
यह मामला राजस्थान हाई कोर्ट के स्टाफ में 13 ट्रांसलेटर के पदों को भरने के लिए भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है। उम्मीदवारों को एक लिखित परीक्षा में शामिल होना था, उसके बाद इंटरव्यू होना था। इक्कीस उम्मीदवार उपस्थित हुए। इनमें से केवल तीन को हाई कोर्ट (प्रशासनिक पक्ष) द्वारा सफल घोषित किया गया था।
बाद में पता चला कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आदेश दिया था कि केवल उन्हीं उम्मीदवारों का चयन किया जाए जिन्होंने कम से कम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों। खास बात ये है कि जब हाई कोर्ट ने पहली बार भर्ती प्रक्रिया की अधिसूचना जारी की थी तो इस 75 प्रतिशत मानदंड का जिक्र नहीं किया गया था। इसके अलावा, इस संशोधित मानदंड को लागू करने पर ही तीन उम्मीदवारों का चयन किया गया और शेष उम्मीदवार बाहर हो गए।