शिक्षक शिवदर्शन को याद करते हुए डा.अरुण कुकसाल ने कही खरी-खरी

शिक्षक शिवदर्शन को याद करते हुए डा.अरुण कुकसाल ने कही खरी-खरी
संस्मरणों की बैठक के साथ छू लिए कई तार

गंगा असनोड़ा
रविवार को आखर साहित्यिक संस्था की ओर से आयोजित स्व.शिवदर्शन सिंह नेगी स्मृति आखर सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि शिक्षाविद् एवं राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार से सम्मानित यात्रा वृतांत लेखकर डा.अरुण कुकसाल ने उत्तराखंड के वास्तविक मुद्दों को राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक स्व.शिवदर्शन सिंह नेगी को याद करते हुए छू लिया। उन्होंने बेहद गंभीर भाव के साथ दिए अपने वक्तव्य में संस्मरणों की बैठक सजा दी तथा शिक्षकों, अभिभावकों तथा समाज के प्रत्येक नागरिक को उसके कर्त्तव्यों का बोध कराया।


स्व.शिवदर्शन सिंह नेगी स्मृति आखर पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक नवीन असवाल के संदर्भ में मुख्य अतिथि डा.अरुण कुकसाल ने कहा कि, ” उनका बायोडाटा उनकी योग्यता को दर्शाता है, लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि उन्होंने कहा कि मैं मंचों पर बोल नहीं पाता हूं। क्योंकि जो बोल नहीं पाता है, वो अपने कर्मों से, अपने चिंतन से, अपने विचारों से समाज में बैठा है, जो आदमी बोलना सीख जाता है, उसका कर्म थोड़ा कम हो जाता है। आज के समय में सबसे बड़ी इंडस्ट्री बोलने की ही है।

जब पहली बार जब उनको देखा, तो उन्होंने ऊंची आवाज में बात की, जो मुझे अच्छा नहीं लगा, लेकिन उसी रात्रि तत्कालीन शिक्षा निदेशक एन.एन.पांडे ने मुझे उनके व्यक्तित्व की जानकारी दी और फिर उन्होंने ही मुझे मंजाकोट विद्यालय भेजा, जहां उनका कार्य देखकर मैं अभिभूत हो गया। मंजाकोट जैसा दूसरा कोई स्कूल आज तक मैंने नहीं देखा। उन्होंने इस अवसर पर उत्तराखंड पुलिस के पूर्व डीजी चमन लाल प्रद्योत जी को याद किया, जिन्होंने नितांत अभाव में शिक्षा ग्रहण कर यह मुकाम हासिल किया।


शिवदर्शन सिंह नेगी जी जब एक शिक्षक के रूप में दिखाई देते हैं, तो कई कहानियां मेरे मन-मस्तिष्क में आती हैं। एक और कहानी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि किसी देश के एक विद्यालय की खूबियां सुनकर राष्ट्रपति ने दौरा तय किया, लेकिन उस विद्यालय के प्रधानाचार्य इस बात पर अड़ गए कि राष्ट्रपति उनके विद्यालय में न आएं। अंततः उन्होंने यह शर्त रखी कि वे पहले राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे। प्रधानाध्यापक जब राष्ट्रपति से मिले, तो उन्होंने राष्ट्रपति से कहा कि, आप देश के पहले नागरिक हैं और हम सब आपके सम्मुख नतमस्तक हैं, लेकिन जब आप हमारे विद्यालय में आएं, तो आप मुझसे पहले अभिवादन करें, मैं आपको पहले अभिवादन नहीं करेंगे। राष्ट्रपति ने प्रधानाध्यापक की बात को तो स्वीकार किया, लेकिन सवाल किया कि, लेकिन आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। तब प्रधानाध्यापक ने बताया कि मेरे विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए अध्यापक से बड़ा कोई नहीं है।

शिक्षक से बड़ा कोई नहीं होता
बच्चों के लिए अपने शिक्षक से बड़ा कोई नहीं होता, लेकिन यदि विद्यार्थी अपने शिक्षकों को किसी अन्य के सम्मुख झुकते हुए देखेंगे, तो वे मानेंगे कि वो दूसरा अधिक शक्तिशाली है। तब वे शिक्षक नहीं बनना चाहेंगे। उनके अवचेतन में यदि यह बात भर जाएगी कि हमारे शिक्षक से भी बड़ा कोई है, आप सोचिए कि कोई बच्चा जब स्कूल की दहलीज में अभिभावक लेकर आता है, तो वह अपनी जिंदगी के पूरे सपने शिक्षकों के चरणों में रख देता है। यह सोचकर कि शिक्षक से बड़ा कुछ नहीं।


वर्तमान में अभिभावक ऐसे हो गए हैं कि बच्चों को नौकरी, कैरियर की ही बात करते हैं, एक जिम्मेदार नागरिक की तरह नहीं। दक्षिण अमेरिका के एक और शिक्षक की याद आती है। बेहद न्यून संसाधनों के साथ उन्होंने पढ़ा और हायर सेकेंड्री के लिए राष्ट्रीय स्काॅलरशिप मिली। जब वे जाने लगे, तो उन्होंने देखा कि उनको छोड़ने मां नहीं आई। जब उन्होंने मां को भीड़ में नहीं देखा, तो वे मां के पास गए और उनसे पूछा कि वे उन्हें विदा करने क्यों नहीं आ रही हैं? तब उनकी मां ने कहा कि मैं नहीं चाहती कि तू बाहर जाए। क्योंकि जिसने भी बाहर जाकर पढ़ा, वो उस समाज से बाहर जाकर उसका नहीं रहा, जिसका वो है। जिस मां, पिता, समाज, मुहल्ले का यदि व्यक्ति नहीं रहा, तो उसके बड़े होने का क्या अर्थ है? उन्होंने अपनी मां से वायदा किया था कि पढ़ने के बाद वे अपने गांव ही वापस लौटेंगे।

आपका इतना बड़ा अर्थशास्त्री बनने का क्या फायदा?
अर्थशास्त्री पीसी जोशी को भी उन्होंने इस अवसर पर याद किया। उनका संस्मरण सुनाया कि वे विदेश गए, तो दूसरे किसी अर्थशास्त्री ने उन्हें रात्रिभोज पर बुलाया। बातचीत के दौरान पूछा कि आप भारत में कहां से हैं, जवाब मिला- दिल्ली से। दिल्ली में कहां से? जवाब मिला- अल्मोड़ा से। फिर उन्होंने पूछा- अल्मोड़ा में कहां से, तो मुझे कुछ सेकेंड लग गए अपने गांव का नाम बताने में। उन्होंने फिर पूछा- आपके गांव के वर्तमान में क्या हालात हैं? वे पढ़ाई-लिखाई के बाद कभी गांव नहीं गए थे, लेकिन अखबारों की रिपोर्ट के आधार पर उन्होंने गांव की बदहाल स्थिति की जानकारी दी।
उनसे यह सब सुनते ही उन्होंने तुरंत कहा- जब आपको गांव इस हालत में है, तो आपका इतना बड़ा अर्थशास्त्री बनने का क्या फायदा? इस पर पीसी जोशी ने इसे अपनी अपमान माना। इस पर उनके साथी ने बताया कि मैं भी अपने देश में एक नामी अर्थशास्त्री हूं, लेकिन इस ग्राम पंचायत का सदस्य हूं, जहां हम अभी बैठे हैं। इसी गांव में मैं पैदा हुआ। मेरी और गांव की उन्नति में अधिक अंतर नहीं है।
बहुत बड़े-बड़े लोग यहां से हुए, लेकिन व्यक्ति आगे बढ़ गया, लेकिन समाज पीछे छूट गया।

ganga asnora
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