रिपोर्टर ब्यूरो
उत्तराखण्ड के जनकवि डा. अतुल शर्मा ये चित्र सिर्फ फोटो भर नहीं, संस्मरणों से भरी यात्राएं हैं। उत्तराखण्ड के आम आदमी की पीड़ा, उत्तराखण्ड के अस्तित्व की लड़ाई किसी भी पर्व, उत्सव, तीज-त्योहार, परम्परा, संस्कृति, साहित्य के साथ जुड़कर विभिन्न आन्दोलनों में, काव्यमंचों पर जो गीत उन्होंने लिखे वो आम आदमी की जुबां पर चढ़कर ऊंचे-ऊंचे हिमाच्छादित पर्वतों, नदियों, जंगलों, किसान की उम्मीदों से लेकर आम व्यक्ति की रसोई तक गुंजायमान रहते हैं। इन चित्रों पर वे स्वयं क्या कहते हैं पढ़िए-
(संपादक)
ये सिर्फ फोटो ही नहीं हैं। ये निरंतर साहित्य और समाज के साथ समरस होने के बहुमूल्य पल हैं। वे पल जो लौट तो नहीं सकते, पर वे सब मेरे व्यक्तित्व में समाहित हैं।

आन्दोलनों में, काव्य मंचां पर, साहित्य ऋषियों के साथ बीते पल। पहाड़ी गांवों, नुक्कड़ों शहरों में। देश से जुड़े हुए अनुभव। आमजन के साथ, आम जन की तरह। अपने लिखे गीत लोगों सुने खूब। बहुत से अनुभव हैं, जो बार-बार मुझे बताते हैं कि पल-पल समर्पित रहा है। वही दिन थे जब संघर्ष में मन रमता था, जो अब भी है। एक अदृश्य घरौंदा बना है, जिसमें असंख्य लोग मिले और बिछुड़े। आंसुओं और ठहाकों के साथ गतिशील रही जीवन प्रक्रिया।

साहित्य और जीवन, पहाड़ और मैदान, लोग, प्रेम, उत्साह, दुख और शोक के सतरंगी इंद्रधनुष उगते ही रहे। प्रवाह के विरुद्ध चलने की कार्यशाला रहा ये जीवन। साथ-साथ सबके साथ रहने का सुख मिला। ऐसी फोटो बहुत हैं और ऐसे अनुभव भी बहुत। मुखौटा नहीं लगाना हुआ कभी, हां बहुत लोगों की मानसिकताओं के मुखौटे उतारे जरूर। अपनापन बांटा और अपनापन मिला। हमारा घर सबका घर रहा।

आज उत्साह और उत्सव कम नही हैं। मेरा परिवार और अपने लोग आसपास हैं। साठ वर्षों से नये-नये साहित्य प्रयोग आविष्कार बन गये हैं। आज भी उसी सक्रियता की राह पर हूँ। मुझे मुस्कुराते चेहरे देखना पसंद है। उन्हीं के साथ रहना होता है। हर पल को जीने की आदत है तो खूब लिख रहा हूँ।
