संपत्ति के पुनर्वितरण पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

46 साल पुराने फैसले को पलटा 9 जजों की संविधान पीठ ने

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 5 नवंबर को एक अहम फैसला सुनाया है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(बी) और अनुच्छेद 31(सी) के संदर्भ में निजी संपत्ति के अधिग्रहण से संबंधित है।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सरकार को कुछ विशेष परिस्थितियों में निजी संपत्तियों का अधिग्रहण कर उनका पुनर्वितरण करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार केवल तब लागू होगा जब सार्वजनिक हित में यह जरूरी माना जाए। 

विस्तार

सीजेआई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि सभी निजी संपत्ति को राज्य सरकार अधिग्रहित नहीं कर सकती है, केवल कुछ संपत्ति को ही अधिग्रहित कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जजमेंट संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से संबंधित एक मामले में सुनाया है। यह अनुच्छेद निजी संपत्तियों और ‘सार्वजनिक भलाई’ के लिए संपत्ति के अधिग्रहण और पुनर्वितरण पर राज्य की शक्ति से संबंधित है।

निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है? इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों मुख्य न्यायाधीश समेत जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया।

जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सीजेआई ने कहा कि “हमारा मानना ​​है कि केशवानंद भारती में जिस हद तक अनुच्छेद 31(सी) को बरकरार रखा गया है, वह लागू रहेगा और यह सर्वसम्मत है।”

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह स्पष्ट किया कि सरकारी नीतियों के तहत यदि किसी निजी संपत्ति का अधिग्रहण जनहित में किया जाए, तो इसे संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत उचित ठहराया जा सकता है।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं माना जा सकता। केवल वही संपत्तियाँ जिन्हें सार्वजनिक हित में उपयोगी माना जाएगा, उनका ही पुनर्वितरण किया जा सकता है।

CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति की तरह नहीं देखा जा सकता है। संपत्ति की स्थिति, सार्वजनिक उपयोगिता, और उसकी आवश्यकता जैसे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही उसे सामुदायिक संपत्ति माना जा सकता है।”

उन्होंने यह भी कहा कि पुराने न्यायिक फैसले जो एक विशेष आर्थिक विचारधारा पर आधारित थे, अब बदल चुके समय और स्थितियों के अनुरूप नहीं हैं। न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि आज के आर्थिक ढांचे में निजी क्षेत्र की अहम भूमिका है। इसलिए निजी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति मानने का प्रश्न तब उठेगा, जब उनका सार्वजनिक हित में पुनर्वितरण जरूरी हो।

1978 के बाद के सभी फैसलों को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में साफ कर दिया है कि सरकार सभी निजी संपत्तियों की अधिग्रहण नहीं कर सकती। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने 1978 के बाद के उन फैसलों को पलट दिया है, जिनमें समाजवादी विषय को अपनाया गया था और कहा गया था कि सरकार आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले सकती है।

सीजेआई ने सात न्यायाधीशों का बहुमत का फैसला लिखते हुए कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हैं और इसलिए सरकारों द्वारा इन पर कब्जा नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 31(सी)

अनुच्छेद 31(सी) का उद्देश्य नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) को लागू करने में मदद करना है। यह अनुच्छेद यह बताता है कि यदि कोई कानून नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुसार बनाया गया है, तो उसे संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ होने पर भी न्यायिक समीक्षा से मुक्त किया जा सकता है। यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि सरकार अपने विकासात्मक योजनाओं को लागू करने के लिए आवश्यक कानून बना सके, जो संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप हों।

अनुच्छेद 39(बी)

अनुच्छेद 39(बी) –भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यह निर्धारित करता है कि किसी भी नीति को लागू करते वक्त सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि संपत्ति का वितरण सार्वजनिक हित में हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संपत्ति का वितरण उस तरीके से हो जो समाज के बड़े हिस्से के लाभ में हो, न कि केवल कुछ विशेष वर्गों के लिए।

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