सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6’A’ की वैधता रखी बरकरार

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार, 17 अक्तूबर को असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6A पर कोर्ट ने कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन कदापि नहीं है।

4- 1 की बहुमत से भारत के CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस फैसले को सुनाया।अपने फैसले में संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।

पीठ ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले चार दिनों तक अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान, कपिल सिब्बल और अन्य की दलीलें सुनीं थीं।

केंद्र सरकार की ओर से दिए गए हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि वह भारत में विदेशियों के अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक डाटा प्रदान करने में सक्षम नहीं होगी, क्योंकि ऐसा प्रवास गुप्त तरीके से होता है।

7 दिसंबर को, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 A (2) के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्रदान करने वाले प्रवासियों की संख्या और भारतीय क्षेत्र में अवैध प्रवास को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, इस पर डाटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

हलफनामे में कहा गया था कि जनवरी 1966 से मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले 17,861 प्रवासियों को इस प्रावधान के तहत भारतीय नागरिकता दी गई। इसमें कहा गया था कि 1966-1971 के बीच विदेशी न्यायाधिकरणों के आदेश से 32,381 लोगों को विदेशी घोषित किया गया। जबकि 2017 से 2022 के बीच 14,346 विदेशी नागरिकों को देश से निर्वासित किया गया।

6A की संवैधानिक वैधता पर 17 याचिकाएं दाखिल

बता दें कि धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए 17 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। धारा 6A को असम समझौते के तहत संविधान के नागरिकता अधिनियम में शामिल लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था। 

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ से कहा था कि धारा 6A भारत के संविधान के मूल ढांचे और प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता, बंधुत्व और भाईचारे के मूल्यों का उल्लंघन करती है।

श्याम दीवान ने पीठ से अनुरोध किया था कि वह केंद्र सरकार को असम में आए सभी लोगों के बसने और पुनर्वास के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए अदालत की निगरानी वाली नीति बनाने का निर्देश दे।

17 दिसंबर, 2014 को असम में नागरिकता से संबंधित मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा गया था। 19 अप्रैल, 2017 को शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए पीठ का गठन किया।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) भारतीय नागरिकों की एक सूची जिसमें उनकी पहचान के लिए सभी आवश्यक जानकारी शामिल है, पहली बार 1951 की राष्ट्रीय जनगणना के बाद तैयार की गई थी। असम NRC का उद्देश्य राज्य में अवैध प्रवासियों की पहचान करना है, जो 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से चले गए।

1985 में भारत सरकार और असम आंदोलन के प्रतिनिधियों ने असम समझौते पर बातचीत और मसौदा तैयार किया और अप्रवासियों की श्रेणियां बनाईं। असम में NRC अभ्यास नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A और असम समझौते 1985 में तैयार नियमों के तहत किया गया था

जानें कोर्ट ने फैसले में क्या कहा

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने बहुमत से दिए गए अपने फैसले में कहा कि संसद के पास इस प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने असहमति जताते हुए धारा 6A को असंवैधानिक करार दिया।

कोर्ट के बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6A पर कोर्ट ने कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन कदापि नहीं है ।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है।

मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि केंद्र सरकार इस अधिनियम (Assam Citizenship Amendment Act) को अन्य क्षेत्रों में भी लागू कर सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि यह असम के लिए विशिष्ट था। असम में आने वाले प्रवासियों की संख्या और संस्कृति आदि पर उनका प्रभाव असम में अधिक है। असम में 40 लाख प्रवासियों का प्रभाव पश्चिम बंगाल के 57 लाख से ज्यादा है। इसका कारण असम का भूमि क्षेत्र पश्चिम बंगाल से कम होना है।

जानें धारा-6A विशेष प्रावधान

नागरिकता अधिनियम की धारा-6A विशेष प्रावधान के तहत शामिल की गई थी ताकि असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से संबंधित मामलों से निपटा जा सके।

कानून के इस प्रावधान में कहा गया है कि जो लोग 01 जनवरी 1966 को या इसके बाद और 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश सहित उल्लेखित इलाकों से असम आए हैं और यहां निवास कर रहे हैं उन्हें वर्ष 1985 में संशोधित नागरिकता कानून के तहत नागरिकता के लिए धारा-18 के तहत अपना पंजीकरण कराना होगा।

इसका नतीजा यह है कि बांग्लादेश से असम आने वालों के लिए कानून का यह प्रावधान 25 मार्च 1971 की ‘कट ऑफ तारीख’ तय करता है।

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https://youtu.be/_gUGR30Res0?si=LJAMKsUZex7bO3SF

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