अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया है। 7 जजों की बेंच ने 4:3 से अपना फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा है, लेकिन उसके लिए मानदंड बनाए हैं। इसके बाद इसे 3 जजों की रेगुलर बेंच के पास भेज दिया है।
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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का आज लास्ट वर्किंग डे है। अपने कार्यदिवस के आखिरी दिन सीजेआई चंद्रचूड़ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट इस विवादास्पद कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाया कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है।
शीर्ष अदालत ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को निर्धारित करने के लिए तीन जजों की बेंच के पास मामले को भेज दिया है। अब यह बेंच सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर एएमयू के दर्जे का निर्धारण करेगी।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है। संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पादरीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं। इस फैसले का असर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर भी पड़ेगा।
अदालत ने आठ दिन तक दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। एक फरवरी को शीर्ष अदालत ने कहा था कि एएमयू अधिनियम में 1981 के संशोधन ने केवल आधे-अधूरे मन से काम किया और संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया। 1981 के संशोधन ने इसे प्रभावी रूप से अल्पसंख्यक दर्जा दिया था।
एएमयू का गठन 1920 के एक्ट से
मंगलवार को केंद्र सरकार की ओर से बहस करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट को ध्यान देना चाहिए कि एएमयू का गठन 1920 के एक्ट से हुआ था। एएमयू न तो अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था और न ही उनके द्वारा प्रशासित होता है। मेहता ने अपनी दलीलों के समर्थन में एएमयू एक्ट में समय-समय पर हुए संशोधनों का जिक्र करते हुए उन संशोधनों के दौरान संसद में हुई बहस का कोर्ट में हवाला दिया।
साथ ही एएमयू पर संविधान सभा की बहस का भी जिक्र किया और कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है बल्कि राष्ट्रीय महत्व का देश का बेहतरीन संस्थान है। उन्होंने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने के परिणाम बताते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15 (1) कहता है कि राज्य किसी के भी साथ जाति, धर्म, भाषा, जन्मस्थान, वर्ण के आधार पर भेद नहीं करेगा।
क्या है एएमयू का इतिहास
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की जड़ें वास्तव में मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (MOA) से जुड़ी हैं, जिसे सर सैयद अहमद खान ने 1875 में स्थापित किया था। इसका मुख्य उद्देश्य उस समय भारत में मुसलमानों के बीच शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करना था।
1920 में, इस संस्थान को भारतीय विधायी परिषद के एक अधिनियम के माध्यम से विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। इस बदलाव ने MOA कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना दिया।
विश्वविद्यालय ने MOA कॉलेज की सभी संपत्तियों और कार्यों को विरासत में प्राप्त किया। 1920 में एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा हासिल हुआ। अल्पसंख्यक दर्जा पाने के लिए एक विश्वविद्यालय को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कुछ मानदंडों को पूरा करना होता है, जिसमें यह साबित करना पड़ता है कि विश्वविद्यालय खास समुदाय के छात्रों की शैक्षिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष रूप से स्थापित किया गया है। हालांकि विश्वविद्यालयों को खास तरह के सरकारी लाभ मिलते हैं, जिसमें स्कॉलरशिप जैसी चीजें शामिल होती हैं।