बर्फबारी व बारिश न होने से काश्तकारों को भारी नुकसान का अंदेशा
केदार घाटी के हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से हिमालय धीरे-धीरे बर्फ विहीन होता जा रहा है, जबकि निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलें खासी प्रभावित होने की सम्भावनाये बनी हुई है।
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय का नवम्बर माह में बर्फ विहीन होने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित है। निचले भू-भाग में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, सरसों व मटर की फसलों पर संकट के बादल मंड़राने से काश्तकारों को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है।
आने वाले दिनों में यदि मौसम के अनुकूल हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी व निचले भू-भाग में बारिश नहीं हुई। तो मई-जून में विभिन्न गांवों में पेयजल संकट गहरा सकता है तथा ग्रामीणों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है।
विगत एक दशक से हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप होने, यात्रा काल के दौरान अन्धाधुन्ध हेलीकाप्टरों का संचालन होने साथ ही ऊंचाई वाले इलाकों में पॉलीथीन का प्रयोग होने से पर्यावरण को खासा नुकसान पहुंचने से प्रतिवर्ष जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ती जा रही है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है।
दो दशक पूर्व की बात करें, तो नवम्बर से लेकर मार्च तक हिमालयी भूभाग बर्फबारी से लदक रहता था तथा हिमालयी क्षेत्र बर्फबारी से लदक रहने से समयानुसार ही ऋतु परिवर्तन होने के साथ प्रकृति में नव ऊर्जा का संचार होता था। मगर धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन होने के कारण हिमालय बर्फ विहीन होता जा रहा है, जिससे पर्यावरणविद खासे चिन्तित है तथा उन्हें भविष्य की चिन्ता सताने लगी है।
केदार घाटी के निचले भूभाग में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ की फसलों के साथ साग-भाजी को भी खासा नुकसान पहुंच रहा है तथा आने वाले दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश नहीं हुई तो काश्तकारों के सन्मुख आजीविका का संकट खड़ा हो सकता है।
मदमहेश्वर घाटी विकास मंच के पूर्व अध्यक्ष मदन भटट् ने बताया कि, काश्तकार प्रकृति के साथ जंगली जानवरों की दोहरी मार झेलने के लिए विवश बना हुआ है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश न होने तथा बची फसलों को जंगली जानवरों द्वारा नुकसान पहुंचाने से काश्तकारों का खेतीबाड़ी से मोह भंग होता जा रहा है।
तुंगनाथ चोपता व्यापार संघ अध्यक्ष भूपेन्द्र मैठाणी का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय बर्फ विहीन होता जा रहा है। भविष्य में यदि हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय आवागमन पर रोक नहीं लगाई गयी तो भविष्य में जलवायु परिवर्तन की समस्या और गम्भीर होने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है।
गैड़ बष्टी के काश्तकार बलवीर राणा का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। नवम्बर माह के दूसरे सप्ताह बाद भी निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से काश्तकार मायूस है तथा काश्तकारों को भविष्य की चिंता सताने लगी है।