भारत में ‘टाटा’ का होना

डॉ. ईशान पुरोहित

आज नहीं, तो कल यह सुनाई देना ही था कि ‘रतन टाटा’ हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन यह जितना बड़ा सच है, उतना ही बड़ा झूठ भी है कि वो हमारे बीच नहीं हैं। ये माना ही नहीं जा सकता कि इस देश का कोई इंसान ये दावा करे कि वो टाटा से अछूता है। वो टाटा जिसकी चाय से सुबह होती है, नमक से जिंदगी में स्वाद बरकरार रहता है, चैनल से मनोरंजन होता है तो फ्लाइट्स से देश दुनिया का सफर, बिजली से महानगरों की जिंदगी गुलजार होती है, तो न जाने देश-दुनिया के खुद से जुड़े पहलुओं में टाटा का शुमार होता है।

आर्मी के भारी भरकम ट्रकों के आगे जब टाटा का लोगो दिखता है, तो उतना ही गर्व महसूस होता है, जितना आर्मी पर। सड़क पर टाटा की गाड़ियां दिखती हैं, तो बस से सफर करने वाला आदमी भी उससे एक कनेक्ट महसूस करता है। सबसे पुरानी एयरलाइंस के फिर से टाटा के हाथों में जाने से किसी को कोई दुःख नहीं होता बल्कि उम्म्मीद रहती है कि एयर इंडिया अब बेहतर कर सकता है। पानी की बाल्टी से लेकर बाथरूम में अलुमिनियम के मग्गा तक अगर टाटा ने कुछ अलग किया, तो वो लोगों के दिल में जगह बनाई और बेशुमार सम्मान पाया, जिसको शायद ही कोई और इण्डस्ट्रीलिएस्ट पा सके। रतन टाटा के निधन के पहले दिन मैं मुंबई में टाटा ग्रुप की एक कंपनी के मैनेजमेंट से ही मीटिंग करके लौटा था और इन कम्पनीज का वर्क कल्चर और वर्क एथिक्स ऐसे हैं कि हर कोई इनसे जुड़कर काम करना चाहता है।

सालों मीटिंग्स के सिलसिले में मुंबई आना-जाना लगा रहता है, लेकिन पहली बार जब मुंबई गया था, तो एक सपना था कि काश कभी यहाँ ‘ताज महल पैलेस होटल’ में रुकने का मौक़ा मिले, जो गेट वे ऑफ इंडिया के सामने है और मुंबई की एक अलहदा पहचान है। हालांकि कि मुंबई में आज इससे भीतर लग्ज़री होटल उपलब्ध हैं। खैर ! इतने सालों के बाद इसी साल मेरा ये सपना पूरा हुआ और मुझे कुछ दिन यहाँ गुजारने का मौक़ा मिला। मेरे लिए यह स्टे इसलिए भी ख़ास था कि मैंने अपने आने वाली एक पुस्तक का समापन यहीं रहते हुए किया। यहाँ का ग्रेंड वेलकम और यहाँ की हॉस्पिटलिटी से ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे लिए वो 26/11 का वो मंजर जानना था, जब इस होटल पर आतंकवादियों ने हमला किया था। यहाँ 31 मृतक कर्मचारियों के सम्मान में एक दीवार बनाई गयी है, जिस पर सभी के नाम अंकित हैं। होटल वाले दिन में तीन बार हिस्टोरिकल टूर ऑर्गनाइज करते हैं, जिसमें यहाँ के 100 वर्षों से अधिक के सुनहरे इतिहास का जिक्र किया जाता है। मैं यहाँ के इतिहास से वाकिफ हो रहा था और समझ पा रहा था कि ताज होटल पर अटैक के बाद हावर्ड विश्वविद्यालय की केस स्टडी कितनी प्रासंगिक थी।

आई आई एस सी, टीआईएफआर, टेरी (जहाँ मैंने भी कई साल जॉब की), टी आई एस एस आदि जैसे वर्ल्ड फेमस शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में अहम् योगदान करने वाले इंडस्ट्री ग्रुप को कोई सिर्फ पूंजीवादी नजरिये से देखेगा, तो यकीनन वह किसी दृष्टि दोष से पीड़ित है। अगर किसी को लगता है कि टाटा दो रुपये के नमक को तीस रुपये में बेच रहा है, तो एक बार घूम आये कच्छ के रण या पोखरण के मरुस्थल में और देखें कि क्या सच में ऐसा है ?

सालों पहले एक मैनेजमेंट संस्थान में लेक्चर देने के बाद मुझे एक पुस्तक भेंट हुई, जिसका शीर्षक ”Jugaad Innovation” (by Navi Radjou, Jaideep Prabhu and Simone Ahuja) था। मुझे इसके टाइटल को देखकर लगा कि कोई सस्ती सी मनोरंजक टाइप किताब होगी लेकिन जब एक एक पन्ना पलटना शुरू किया तो समझ आने लगा कि किस क्वालिटी का कंटेंट इसमें समाहित है। इस किताब की फॉरवार्डिंग ‘रतन टाटा’ ने लिखी है कि कैसे साधारण आम जिंदगी में होने वाली चीजों को बिजनेस में प्रयोग करके उसका वृहद् रूप तैयार किया जा सकता है ।

टाटा ने देश को गर्व करने के तमाम मौके दिए हैं और इसके संस्थान आगे भी देते रहेंगे। रतन टाटा ने एक निर्विवाद संवेदनशील सहज और विनम्र व्यक्तित्व का निर्माण किया जिसने सभी से सिर्फ और सिर्फ सम्मान ही पाया। ऐसी स्वीकारोक्ति डॉ अब्दुल कलाम की थी, जिनसे हर कोई जुड़ा हुआ महसूस करता था।

इनकी प्रेम कहानी पर सीरीज करना सस्ती पत्रकारिता का एक पहलू है। लेकिन ‘रतन टाटा’ के व्यक्तित्व को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। उनको भारत रत्न देना या न देना सरकारों की मर्जी है, लेकिन उनका कद ”भारत रत्न” से बड़ा है।

”जाने वाले गए ही नहीं, चाँद सूरज घटा हो गए।”

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