जनसाधारण को उपलब्ध होगा अब यूसीसी अधिनियम लिव-इन रिलेशनशिप पर खैर नहीं

1700 पन्नों की रिपोर्ट http://ucc.uk.gov.inवेबसाइट पर हुई जारी
क्रियान्वयन समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह ने दी जानकारी

भारती जोशी

उत्तराखण्ड समान नागरिक अधिनियम अब किसी को भी ऑनलाइन उपलब्ध होगा। देहरादून के सर्किट हाउस एनेक्सी में नियम एवं क्रियान्वयन समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह ने मीडिया से बातचीत करते हुए यह जानकारी दी।

बीते 11 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा उत्तराखण्ड यूसीसी बिल को मंजूरी दिए जाने के बाद सरकार पर यूसीसी बिल सार्वजनिक किए जाने का दबाव था। इसके लिए मुख्यमंत्री ने शीघ्र ही रिपोर्ट आॅनलाइन किए जाने का ऐलान बीते 11 जुलाई को दिल्ली में समान नागरिक संहिता के कार्यन्वय के लिए आयोजित सम्मान समारोह के दौरान किया था। इस संदर्भ में शुक्रवार को राज्य सरकार द्वारा 1700 पन्नों का अधिनियम http://ucc.uk.gov.in पर जारी कर दिया गया है।

लिव-इन रिलेशनशिप वालों की खैर नहीं
उत्तराखण्ड यूसीसी विधेयक के भाग-3, 378 एक व दो, धारा 379, 380, 383, 384 व धारा 385 एक में लिव इन रिलेशनशिप के लिए प्रविधान रखे गए हैं। जिसके अंतर्गत लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की उम्र 21 वर्ष, 1 माह के भीतर पंजीकरण, बच्चा होने पर उसे वैधता प्रदान करने, बलपूर्वक सहवास करने, किसी तरह की धोखाधड़ी, पंजीकरण न किए जाने में सजा निर्धारित की गई है, तथा पंजीकरण समाप्त किए जाने का अधिकार प्रदान किया गया है। एक माह के भीतर पंजीकरण न होने की दशा में तीन माह का कारावास तथा 10 हजार रूपए अर्थदंड भी हो सकता है।

इस विषय पर प्रख्यात समाजशास्त्री प्रो. जेपी पचैरी का कहना है, कि लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा पश्चिमी देशों से आई है। भारतीय समाज अपनी परंपराओं, स्वनिर्मित सामाजिक मूल्यों तथा विभिन्न धर्म, जाति के मत-मतांरों में जकड़ा हुआ समाज है। ऐसे में लिव-इन रिलेशनशिप को स्वीकारने में विशेषकर उत्तराखण्ड समाज को समय लगेगा। राज्य सरकार ने समाज की इसी मानसिकता को समझते हुए यूसीसी विधेयक में इन कानूनों को स्थान दिया है।

अलग-अलग समाजों में लिव-इन रिलेशनशिप
हालांकि समाज के विभिन्न वर्गों में अलग-अलग रूपों में प्रतिक्रिया देखी जा रही है। यदि मेजोरिटी एक्ट 1875 की धारा 3(1) के अनुसार, भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को 18 वर्ष पूर्ण होने पर वयस्क माना जाता है। 61 वें संविधान संशोधन 1988 में लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व पर मतदान का अधिकार भी 21 वर्ष से 18 वर्ष कर दिया गया था।

जीव विज्ञानियों की मानें, तो 18 वर्ष की आयु तक एक लड़की और लड़के के सभी अंग सहवास की दृष्टि से बलिष्ठ तथा पूर्ण संरचना प्राप्त हो जाते हैं। ऐसे में उत्तराखंड के यूसीसी विधेयक में लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने की कोशिश और उस पर पंजीकरण की अनिवार्यता, लिव इन रिलेशन के लिए 21 वर्ष की आयु का प्रावधान तथा किसी एक के 21 वर्ष से कम होने पर अभिभावकों से शिकायत किए जाने जैसे प्रावधान प्रदर्शित करता है कि 18 वर्ष में भले ही एक युवा अपना शासन चुन सकता है, लेकिन वह अपना जीवनसाथी चुनने के लिए असक्षम है। इतना ही नहीं, यदि इन प्रावधानों के इतर कोई व्यक्ति अपना साथी चुनेगा, तो वह अपराधी होगा। जबकि पश्चिमी देशों में लिव-इन रिलेशनशिप के लिए बनाए गए कानूनों 18 वर्ष की उम्र तय की गई है। उदाहरण के लिए नीदरलैंड के मसौदे को पढ़ा जा सकता है, जहां 18 वर्ष की उम्र के साथ युगल अभिभावकों पर निर्भर न होकर स्वावलम्बी हों।

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप की शुरूआत 1929
भारतीय समाज में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सर्वप्रथम पहला मामला साल 1929 में मोहब्बत अली खान बनाम मोहम्मद इब्राहिल खान के मामले से मिलती है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय लिया था कि भारतीय कानून व्यवस्था में लिव-इन रिलेशनशिप के स्पष्ट रूप से कानून का अभाव है। अतः विधायिका को लिव-इन रिलेशनशिप के मामलों को निपटाने को ठोस कानून बनाने चाहिए।

https://regionalreporter.in/message-of-not-only-planting-saplings-but-also-protection-of-plants/
https://youtu.be/sLJqKTQoUYs?si=2yw8SANLPg180uok

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