कोर्ट ने केन्द्र से 3 हफ्तों में मांगा जवाब
मामले की अगली सुनवाई होगी 17 दिसंबर को
सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि तीन माह से कम उम्र का बच्चा गोद लेने पर ही मातृत्व अवकाश क्यों दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए कुल 3 हफ्तों का वक्त दिया है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी।
विस्तार
बच्चे की उम्र तीन महीने से कम हो, तभी गोद लेने वाली मां को मैटरनिटी लीव का लाभ मिलता है। इस कानूनी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा है, जिसमें याचिकाकर्ता ने मैटरनिटी बेनिफिट (अमेंडमेंट) एक्ट 2017 के प्रावधान को चुनौती दी है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच के सामने आया।
पीठ ने कहा कि, केंद्र ने तीन महीने की उम्र निर्धारित करने को उचित ठहराते हुए अपना जवाब दाखिल किया है, लेकिन सुनवाई के दौरान कई मुद्दे सामने आए हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘ऐसी परिस्थितियों में, हम भारत संघ से अपेक्षा करते हैं कि वह चर्चा किए गए मुद्दे पर एक और जवाब दाखिल करे, विशेष रूप से, यह कहने का क्या औचित्य है कि केवल वही महिला मातृत्व अवकाश लाभ लेने की हकदार होगी जो तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है अन्यथा नहीं।
किसने दाखिल की है याचिका
हंसा आनंदिनी नाम की एक महिला ने 2017 में दो बच्चों को गोद लिया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने की अपील की है। धारा 5(4) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इस धारा के तहत 3 महीने से छोटे बच्चों को गोद लेने वाली माताओं को 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश मिलता है, लेकिन 3 महीने से बड़े बच्चों को गोद लेने वाली माताओं को कोई लाभ नहीं मिलता।
क्या है मैटरनिटी लीव कानून?
संविधान के अनुच्छेद-42 के तहत गर्भवती महिलाओं को सुरक्षा दी गई है। कामकाजी महिलाओं को इस दौरान तमाम अधिकार दिए गए हैं। संसद द्वारा बनाए गए कानून में काम के दौरान अगर महिला गर्भवती हुई तो उसे इस बेनिफिट का लाभ मिलेगा।
कानून के तहत महिला को संभावित डिलीवरी डेट के 6 हफ्ते पहले और 6 हफ्ते बाद तक छुट्टी मिलेगी। इस दौरान महिला को सैलरी और भत्ता दिया जाएगा जो सैलरी व भत्ता उसे आखिरी बार दिया गया था। अगर महिला का अबॉर्शन हो जाता है तो भी उसे इस एक्ट का लाभ मिलेगा। अब कुल 12 हफ्ते की छुट्टी को 24 हफ्ते कर दिया गया है।
इस दौरान यानी मेटरनिटी लीव के दौरान महिला पर किसी तरह का आरोप लगाकर उसे नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर महिला का एम्प्लायर इस बेनिफिट से उसे वंचित करने की कोशिश करता है तो महिला इसकी शिकायत कर सकती है। महिला कोर्ट भी जा सकती है।