गंगा असनोड़ा
मार्च, 1946 को पौड़ी गढ़वाल के गिरगांव में जन्मे मदन मोहन नौटियाल उम्र के 78वें वर्ष में 7 अगस्त, 2024 को इहलोक को अलविदा कह गए। सामाजिक हितों की लड़ाई में वे हमेशा मुखर रहे, परन्तु दुनिया से जाते हुए उन्होंने स्वाभाविक खामोशी ओढ़ ली थी। चार माह पूर्व ही उनकी धर्मपत्नी का देहान्त हुआ था।
मदन मोहन नौटियाल जी की सामाजिक सक्रियता ता-उम्र बनी रही। उत्तराखंड क्रांति दल के वे संस्थापक सदस्य थे। अतः उत्तराखण्ड आन्दोलन में उनकी सहभागिता अग्रिम पंक्ति की थी। 1992 में गैरसैंण को चंद्रनगर घोषित कर उत्तराखंड की जनता की राजधानी का पत्थर गाढ़ने वाले उक्रांद नेताओं में वे शामिल थे।
ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेने के बाद उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल के जीआईसी मार्ग पर एक वर्कशाॅप स्थापित किया। यह वर्कशाॅप तब गढ़वाल क्षेत्र का सबसे चर्चित वर्कशाॅप था, जहां हर रोज सरकारी वाहनों का जमावड़ा दिखाई देता, लेकिन लगन के सच्चे एक युवा को कमाई से अधिक उत्तराखंड राज्य प्राप्ति की जरूरत महसूस हुई।
1973 से वे राज्य आंदोलनों में सक्रिय हो गए। 1976 में उत्तराखंड युवा मोर्चा का उन्होंने गठन किया। 1979 में उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक रहे तथा उसी वर्ष उक्रांद के केंद्रीय महासचिव बनाए गए। 1980 में उक्रांद के गढ़वाल सीट से लोकसभा प्रत्याशी, 1990 में उक्रांद से विधान परिषद् के प्रत्याशी, 1991 में पुनः लोकसभा प्रत्याशी रहे।
कई बार की जेल यात्राएं
उन्होंने कई बार जेल यात्रा भी की, परन्तु जनभावनाओं और सरोकारों के अनुकूल उत्तराखण्ड राज्य न बन पाने का दुःख उन पर इस कदर रहा कि वे कभी भी उत्तराखण्ड के किसी बड़े राजनेता के सम्मुख नहीं गए। सरकारी आयोजनों से उन्होंने हमेशा दूरी बनाये रखी।
उत्तराखंड के वर्तमान हालातों से थे निराश
उत्तराखंड के वर्तमान हालातों से वे इतने चिंतित थे कि कुछ वर्षों से उन्होंने सार्वजनिक मंचों से वक्ता के रूप में भी दूरी बना ली थी। वे कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते, लेकिन जब उन्हें बोलने के लिए कहा जाता, तो वे इंकार कर देते।
उक्रांद के कुछ महत्वाकांक्षी नेताओं की करनी से एक क्षेत्रीय दल की जो गत उत्तराखंड में हुई, उस पर वे बेहद निराश थे। वे कहते कि हमने जिस दल को खड़ा करने तथा जिस राज्य की प्राप्ति के लिए अपना जीवन और सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, उसी दल को कुछ चकड़ैतों ने तथा उस राज्य को सत्ता पर काबिज नेताओं ने कहीं का नहीं छोड़ा।
एक योगी की तरह अपनी जीवनीय भूमिका को उन्होंने विराम दिया। स्टेट बैंक में अपने काम से गए मदन मोहन नौटियाल जी को 7 अगस्त की दोपहर अचानक चक्कर सा आया और फिर वे हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गए।
आपको नमन पुण्य आत्मा!