किन्नर रजनी रावत पर लगाए संगीन आरोप

किन्नर रजनी रावत राजनीति की खिलाड़ी
अभिरेख अरूणाभ

किन्नर रजनी रावत पर देहरादून के स्थानीय किन्नर समुदाय की ट्रांस महिलाओं के सदस्यों ने संगीन आरोप लगाए हैं। आज यह मुद्दा फिर से उठ गया है, जब देहरादून में ट्रांसजेंडर समुदाय की एक सदस्य निशा चौहान के अपहरण और मारपीट का मुद्दा उनके किन्नर समूह की एक सदस्य ट्रांस महिला ओशिन ने उठाया है। ओशिन ने प्रेस क्लब देहरादून में प्रेस वार्ता कर किन्नर रजनी रावत पर आरोप लगाए।

हरिद्वार, ऋषिकेश तथा देहरादून के किन्नरों के एक समूह ने प्रेस वार्ता कर किन्नर रजनी रावत पर संगीन आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि किन्नरों को किन्नर रजनी रावत द्वारा किडनैप कर मारपीट की जा रही है।

ट्रांस महिला ओशिन तथा उनके साथियों ने देहरादून में प्रेस वार्ता कर कहा कि 13 अप्रैल को निशा चौहान को किडनैप करके अटैक किया है। ट्रांसजेंडर रजनी रावत पर सक्रिय गिरोह की तरह कार्य करने का आरोप लगाया है।

पहले मारपीट के वीडियो वायरल करते थे, जो यू ट्यूब पर जगह-जगह मिल जाएंगे, लेकिन अब प्लानिंग के साथ मारपीट ही करने लगे हैं। देहरादून शहर का माहौल खराब कर रहे हैं, लेकिन राजनैतिक दबाव में पुलिस भी अपना कार्य करने को तैयार नहीं है।

देहरादून का माहौल खराब किया जा रहा है और हमारा मुख्य उददेश्य यह है कि ऐसा न हो। उन्होंने आरोप लगाया कि रजनी खेमे में लिंग परिवर्तन कराकर नेपाल और बांग्लादेश से किन्नरों को रखा है। हमें कोई काम नहीं करने दिया जाता है, जिससे हमारे खाने-कमाने का संकट पैदा हो गया है। यह हमारे मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है। हमारे संविधान ने हमें कार्य करने का अधिकार दिया है, लेकिन किन्नर रजनी रावत हमें हमारे अधिकार से वंचित करने का काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि नेपाल और बांग्लादेश से आए किन्नर स्थानीय किन्नरों के साथ मारपीट कर उन्हें भाग जाने को कहते हैं, लेकिन इनकी जांच की जानी चाहिए कि इतनी संख्या में किन्नर आ कहां से रहे हैं। उन्होंने नाराजगी जताई कि साथ ही पुलिस भी इनके मामलों को दो गुटों की लड़ाई बताकर इस पर ध्यान नहीं देती है।

ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याएं और भारतीय संविधान
आज यह मुद्दा फिर से उठ गया है, जब देहरादून में ट्रांसजेंडर समुदाय की एक सदस्य निशा चौहान के अपहरण और मारपीट का मुद्दा ट्रांस महिला ओशिन द्वारा उठाया गया। ओशिन ने प्रेस क्लब देहरादून में पत्रकारों से बातचीत में एक-दूसरे ट्रांसजेंडर समूह की लीडर रजनी रावत पर आरोप लगाए।

ट्रांस महिला ओशिन ने कहा कि रजनी रावत के समूह में कई बाहरी देशों जैसे-नेपाल, बांग्लादेश के ट्रांसजेंडर लोग शामिल हैं, जो जैसे स्थानीय ट्रांसजेंडरों के साथ मारपीट करते हैं और उनसे वहाँ से भाग जाने को कहते हैं। साथ ही पुलिस भी इनके मामलों को दो समूह की लड़ाई बताकर ठंडे बस्ते में डाल देती है।

सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति
आज से ठीक 10 वर्ष पूर्व 15 अप्रैल 2014 में नेशनल लीगल सर्विसेज अथाॅरिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2014) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसा निर्णय दिया जो मील का पत्थर बन गया है।

इस निर्णय के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को तीसरे लिंग (थर्ड जेंडर) का दर्जा दिया और उन्हें भी सभी संविधानिक और मौलिक अधिकारों का हकदार सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति को अपनी पहचान (पुरुष, महिला या थर्ड जेंडर) चुनने की स्वतंत्रता है।

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय समाज में जेंडर समानता के स्तर में एक बड़े कदम के तौर पर देखा गया था। इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र तथा राज्य सरकारों को निर्देश भी दिए कि वह ट्रांसजेंडर समुदाय के स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए ठोस कदम भी उठाए। इसी निर्देश के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने वर्ष 2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लाया।

वर्तमान परिदृश्य में कितना बदलाव आयाः-
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय की कुल आबादी लगभग 4.88 लाख है।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार – ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिनकी लैंगिक पहचान (Gender) जन्म के समय निर्धारित लिंग के साथ मेल नहीं खाती है।

इनमें ट्रांस-पुरुष एवं ट्रांस महिलाएँ शामिल होती हैं, फिर चाहे ऐसे व्यक्ति ने लिंग पुनर्निर्धारण सर्जरी (gender reassignment surgery) या हार्मोन उपचार अथवा लेजर उपचार या इस तरह का अन्य उपचार कराया हो या नहीं।

इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों की श्रेणी में अलग-अलग प्रकार के इंटरसेक्स (Intersex), जेंडरक्वीर (Genderqueer) और
इसी प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति भी शामिल है, उदाहरण के लिए किन्नर, हिजड़ा, अरावनी और जोगता।

ये सभी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 (1) और 21 के साथ-साथ सभी मौलिक और कानूनी अधिकारों के हकदार हैं। साथ ही, एक मनुष्य होने के नाते भी यह समुदाय कुछ सार्वभौमिक अधिकारों के लिए पात्र हैं।

हालांकि योग्याकार्ता सिद्धांतों (Yogyakarta principles) ने उल्लेखनीय रूप से इनसे जुड़े सार्वभौमिक अधिकारों की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। इन सिद्धांतों को इसलिए विकसित किया गया था, ताकि अलग लैंगिक अभिविन्यास (सेक्सुअल ओरिएंटेशन) और लैंगिक पहचान की स्वतंत्रता का मान्यता प्रदान की जा सके।

योग्याकार्ता सिद्धांतों को 29 सिद्धांतों की एक सूची के रूप विकसित किया गया था। इसमें विकसित भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम आदि सहित 29 हस्ताक्षरकर्ता देश शामिल हैं। इसके अलावा वर्ष 2017 में “योग्याकार्ता प्लस 10” पहल को भी जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्वीकृति प्रदान की गई थी।
ये सिद्धांत बाध्यकारी मानक हैं जिनका सभी देशों द्वारा पालन करना आवश्यक है।

चुनौतियाँ –संवैधानिक और कानूनी संरक्षण के बावजूद, थर्ड जेंडर को अब तक मुख्य धारा के लैंगिक विचार-विमर्श के दायरे में नहीं लाया जा सका है। ऐसे में उन्हें अपने जेंडर के कारण उपेक्षा और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

उपेक्षा और सामाजिक बहिष्करण:- लैंगिक पहचान न मिल पाना थर्ड जेंडर व्यक्तियों को सामाजिक रूप से हाशिए पर धकेल देती है। इसके कारण इन्हें नस्लवाद, लिंग भेद, होमोफोबिया आदि का सामना करना पड़ता है।

कार्य का अभाव- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के वर्ष 2018 के अध्ययन के अनुसार 96 प्रतिशत ट्रांसजेंडर को नौकरी देने से मना कर दिया जाता है। इस कारण इन्हें आजीविका के लिए कम वेतन वाले या अगरिमापूर्ण कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

शिक्षा का अभाव – विशेष प्रावधानों की कमी तथा मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में थर्ड जेंडर समुदाय को शामिल करने की नीति के खराब कार्यान्वयन के कारण शैक्षणिक संस्थानों तक उनकी पहुँच सीमित रही है।

आवास संबंधी चुनौतियाँ- क्वीर (लैंगिक रूप से थोड़ा अलग होना) पहचान के कारण उन्हे अधिकांश जीवन शहरों की सड़को पर व्यतीत करना पड़ता है।

स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं – ट्रांसजेंडर चिकित्सा में विशेषज्ञता प्राप्त सेवा प्रदाताओं की कमी, वित्तीय सहायता, क्लिनिकल सुविधाओं के अभाव आदि के कारण स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुँच सीमित है। अपनी स्पष्ट पहचान प्राप्त न होने की वजह वजह से यह संविधान प्रदत मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं।

मानवाधिकारों का उल्लंघन – ये पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन अलग-अलग कार्ड पहचान-पत्र मानवाधिकारों से वंचित रहे हैं। आदि प्राप्त करने जैसे अलग-अलग मानवाधिकारों से वंचित रहे हैं।

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कुछ उठाए गए सकारात्मक कदम और आगे की राह –

  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय परिषद (NCT) का गठन किया गया है। यह न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (MOSJE) द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के तहत किया गया।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय पोर्टल खोला गया है। इस पोर्टल के माध्यम से ट्रांसजेंडर व्यक्ति देश में कहीं से भी प्रमाण-पत्र और पहचान-पत्र के लिए डिजिटल रूप से आवेदन कर सकते हैं।
  • रेल मंत्रालय ने वर्ष 2016 में अपने आरक्षण फाॅर्म में एक थर्ड जेंडर काॅलम शामिल किया था। इसके साथ ही रेलवे टिकट फाॅर्म में ऑप्शन के रूप में ट्रांसजेंडर को भी शामिल किया गया था।
  • थर्ड जेंडर के व्यक्तियों का जीवन हमेशा से ही चुनौतीपूर्ण रहा है। यह समय की मांग है कि थर्ड जेंडर के प्रति नकारात्मक व्यवहार को बदला जाए और उनके प्रति हिंसा को समाप्त किया LGBTQI+ एक महत्त्वपूर्ण लैंगिक पहचान का मुद्दा है। समाज की मुख्यधारा में उनके एकीकरण के लिए सरकार और नागरिक समाज की कार्यवाही की आवश्यकता है। अब भारत में थर्ड जेंडर समुदाय के विकास के लिए कलंक, भेदभाव और मानवाधिकारों के उल्लंघन को समाप्त करना समय की मांग है।
https://youtu.be/kqAhhGgJPzE?feature=shared

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