25 जुलाईः श्रीदेव सुमन स्मृति दिवस

84 दिन का अनशन और दी अपने प्राणों की आहूती
रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो

श्रीदेव सुमन (मूल नाम श्रीदत्त बडोनी) को टिहरी रियासत और अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ जनक्रान्ति कर अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए याद किया जाता है। आज उन्हीं श्री देवसुमन की पुण्यतिथि है। उनके बलिदान दिवस को उत्तराखंड राज्य में ‘सुमन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

श्री देव सुमन जी का प्रारम्भिक जीवन
श्री देव सुमन जी का जन्म टिहरी गढ़वाल के जौल नामक ग्राम में 25 मई 1916 को हुआ था। उनके पिता हरिराम बडोनी अपने क्षेत्र के लोकप्रिय वैध थे। माता तारा देवी एक गृहणी थी। श्रीदेव सुमन का बचपन का नाम श्रीदत्त बडोनी था। सन 1919 में हैजे का प्रकोप फैलने पर श्री हरिराम बडोनी मरीजों सेवा करते, स्वयं हैजे का शिकार हो गए और 36 साल की उम्र में ही चल बसे।

इनकी आरम्भिक शिक्षा अपने पैतृक गांव व चम्बाखाल में हुई। 1931 में इन्होंने टिहरी से हिंदी मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1931 में ये देहरादून गए और पढ़ाई पूरी कर वे हिन्दू नेशनल स्कूल, देहरादून में पढ़ाने लगे। इसके साथ ही उन्होंने साहित्य रत्न, साहित्य भूषण, प्रभाकर, विशारद जैसी परीक्षायें भी उत्तीर्ण कीं।

1937 में उनका कविता संग्रह ‘सुमन सौरभ’ प्रकाशित हुआ। वे हिन्दू, धर्मराज, राष्ट्रमत, कर्मभूमि जैसे हिन्दी व अंग्रेजी पत्रों के सम्पादन से जुड़े रहे। उन्होंने गढ़ देश सेवा संघ, हिमालय सेवा संघ, हिमालय प्रांतीय देशी राज्य प्रजा परिषद, हिमालय राष्ट्रीय शिक्षा परिषद आदि संस्थाओं के स्थापना की।

1938 में विनय लक्ष्मी से विवाह के कुछ समय बाद ही श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित एक सम्मेलन में नेहरू जी की उपस्थिति में उन्होंने बहुत प्रभावी भाषण दिया। 1939 में सामन्ती अत्याचारों के विरुद्ध ‘टिहरी राज्य प्रजा मंडल’ की स्थापना हुई और सुमन जी इसके मंत्री बनाये गये।

अपने गांव तथा टिहरी में उन्होंने राजा के मुलाज़िम द्वारा जनता पर किये जाने वाले अत्याचारों को देखा। 1930 में 14 वर्ष की किशोरावस्था में उन्होंने ‘नमक सत्याग्रह’ में भाग लिया। थाने में बेतों से पिटाई कर उन्हें 15 दिन के लिये जेल भेज दिया गया पर इससे उनका उत्साह कम नहीं हुआ। अब तो जब भी जेल जाने का आह्वान होता, वे सदा अग्रिम पंक्ति में खड़े हो जाते। 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ में वे 15 दिन जेल में रहे।

35 सेर की बेड़ियों में कैद रहे सुमन
टिहरी रियासत की सार्वभौम सत्ता ब्रिटिश ताज में ही निहित थी, इसलिए किसी भी रियासत का अपराधी ब्रिटिश राज का भी अपराधी था। इसलिए श्रीदेव सुमन को गिरफ्तार कर 6 सितम्बर 1942 को देहरादून पुलिस के हवाले किया गया तो ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें आगरा जेल भेज दिया था।

आगरा जेल से छूटने के बाद श्रीदेव सुमन 30 दिसम्बर, 1943 को टिहरी जेल में बन्द कर दिए गए और फिर कभी जीवित बाहर नहीं निकले। जेल में ही रहते 21 फरवरी 1944 को स्पेशल मजिस्ट्रेट ने देशद्रोह की धारा 124 (A) के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास और 200 रुपये अर्थदण्ड की सजा सुमन को सुनाई।

30 दिसम्बर, 1943 से 25 जुलाई, 1944 तक 209 दिन सुमन ने टिहरी की नरकीय जेल में बिताए। इस दौरान इन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे, झूठे गवाहों के आधार पर जब इन पर मुकदमा दायर किया गया तो इन्होंने अपनी पैरवी स्वयं की और लिखित बयान देते हुए कहा-

मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ कि मैं जहाँ अपने भारत देश के लिये पूर्ण स्वाधीनता के ध्येय में विश्वास करता हूँ वहीं, टिहरी राज्य में मेरा और प्रजामंडल का उद्देश्य वैध व शांतिपूर्ण उपायों से श्री महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन प्राप्त करना और सेवा के साधन द्वारा राज्य की सामाजिक, आर्थिक तथा सब प्रकार की उन्नति करना है। हाँ, मैंने प्रजा की भावना के विरुद्ध काले कानूनों और कार्यों की अवश्य आलोचना की है और मैं इसे प्रजा का जन्मसिद्ध अधिकार समझता हूँ।”

84 दिन तक जेल में प्रताड़ना और ऐतिहासिक अनशन
राजा की तरफ से कोई कार्यवाही न होने पर श्रीदेव सुमन ने विरोध स्वरुप 3 मई, 1944 से अपना ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। इस बीच उनका मनोबल तोड़ने के लिए उन पर कई क्रूर अत्याचार किए गए। सुमन के इस ऐतिहासिक अनशन का समाचार जब टिहरी की जनता तक पहुँचा, तो रियासत ने यह अफवाह फैला दी कि श्रीदेव सुमन ने अनशन समाप्त कर दिया है और 4 अगस्त को महाराजा के जन्मदिन पर उन्हें रिहा कर दिया जाएगा।

अनशन खत्म करने की शर्त पर यह प्रस्ताव सुमन जी को भी दिया गया। लेकिन श्रीदेव सुमन का जवाब था- “क्या मैंने अपनी रिहाई के लिए यह कदम उठाया है? ऐसा मायाजाल डालकर आप मुझे विचलित नहीं कर सकते। अगर प्रजामण्डल को रजिस्टर्ड किए बिना मुझे रिहा कर दिया गया तो मैं फिर भी अपना अनशन जारी रखूँगा।”

यह प्रस्ताव ठुकराने के बाद सुमन को जेल के अधिकारियों द्वारा काँच मिली रोटियाँ खाने को दी गईं। प्रताड़ना और अनशन से उनकी हालत बिगड़ती गई। जेलकर्मियों ने लोगों के बीच यह खबर फैला दी कि सुमन को न्यूमोनिया हो गया है, जबकि उन्हें जेल में कुनैन के इन्ट्रावेनस इन्जेक्शन लगाए गए।

कम्बल में लपेट बोरी के अन्दर सिल दिया मृत शरीर
कुनैन के इन्ट्रावेनस इंजेक्शंस के कारण सुमन डिहाइड्रेशन से जूझने पर पानी के लिए चिल्लाते, लेकिन उन्हें पानी नहीं दिया जाता था। 25 जुलाई, 1944 को शाम करीब चार बजे अमर सेनानी ने अपने देश और अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

इसी अन्धेरी रात में सुमन की लाश उन्हीं के नीचे बिछे कम्बल में लपेट कर एक बोरी के अन्दर सिल दी गई। और चुपके से जेल के फाटक से बाहर निकले और मृत शरीर को भागीरथी और भिलंगना के संगम से नीचे तेज प्रवाह में फेंक दिया। यह काम जनता से छुपकर किया गया क्योंकि उन्हें सुमन पर किए गए अत्याचारों से हुई इस मृत्यु से जनता द्वारा बगावत किए जाने का भय था।

टिहरी राज्य के कैदखाने दुनिया भर में मशहूर होंगे : नेहरू
टिहरी रियासत के जुल्मों के संबंध में इस दौरान जवाहर लाल नेहरू ने भी कहा था कि टिहरी राज्य के कैदखाने दुनिया भर में मशहूर रहेंगे, लेकिन इससे दुनिया में रियासत की कोई इज्जत नहीं बढ़ सकती। श्रीदेव सुमन ने टिहरी की जनता के अधिकारों को लेकर अपनी आवाज बुलन्द करते हुए कहा था- “मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूँगा, लेकिन टिहरी के नागरिक अधिकारों को कुचलने नहीं दूँगा।”

बलिदान के बाद प्रजामंडल की स्थापना
श्रीदेव सुमन के बलिदान का जनता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और लोगों ने राजशाही के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया। सुमन के बलिदान के बाद जनता के आन्दोलन ने टिहरी रियासत को प्रजामण्डल को वैधानिक करार देने पर मजबूर कर दिया।

वर्ष 1948 में जनता ने कीर्तिनगर, देवप्रयाग और टिहरी पर अधिकार कर लिया और प्रजामण्डल का मंत्रिपरिषद गठित हुआ। टिहरी गढ़वाल के भारतीय गणराज्य में शामिल हो जाने तक यह आन्दोलन चलता रहा। इसके बाद 1 अगस्त, 1949 को टिहरी गढ़वाल राज्य का भारत गणराज्य में विलीनीकरण हो गया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने टिहरी जन क्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर उनके चित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि श्रीदेव सुमन ने अपने समय की कठिन परिस्थितियों में लोकशाही के लिए संघर्ष किया तथा अपने जीवन का बलिदान दिया। समर्पण एवं संघर्ष से परिपूर्ण श्रीदेव सुमन की जीवन गाथा सदैव हमें मातृभूमि की सेवा के लिए प्रेरित करती रहेगी।

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https://youtu.be/DOr9xIQE7b8?si=VpC0BXTUTx5O4Nzq

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