शानदार स्काउट गाइड और प्रशिक्षक थी सावित्री झिंकवाण
कीर्तन मंडलियों को सबसे पहले दिया था नया आयाम
गंगा असनोड़ा
एक हंसमुख, सहज, सरल सामाजिक व्यक्तित्व यदि दुनिया से विदा हो जाए, तो उसकी टीस पूरे समाज के बीच वर्षों-वर्षों तक उभरती रहती है और यदि वह व्यक्तित्व इन गुणों के साथ एक शिक्षक हो, तो वह पीड़ा एक ही नहीं दो पीढ़ियों की होती है।
ऐसी ही एक जानदार शिक्षिका सावित्री झिंकवाण बीते बुधवार 76 वर्ष की आयु में इहलोक से उहलोक को सिधार गई। अपनी अनगिनत खूबियों के साथ शिक्षिका सावित्री झिंकवाण अपने विद्यार्थियों के बीच बेहद चर्चित रहीं। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वो धरती से जुड़ी इंसानियत दिल में बसाए, हर व्यक्ति पर अपनापन बरसाने वाली सहज और सरल व्यक्तित्व महिला थीं।
व्यक्तिगत जीवन के झंझावातों के बीच उन्हें उतने ही सरल हृदय वाले जीवन साथी हयात सिंह झिंकवाण का साथ मिला और आजीवन वे अपने ही अंदाज में सामाजिक सेवा में रची-बसी रहीं। उन्हें शिक्षा विभाग में प्रथम नियुक्ति कन्या कर्मोत्तर तत्कालीन समय में कक्षा एक से कक्षा आठवीं तक केद्धविद्यालय टिहरी भरदार में मिली।
इसके बाद वे तिलवाड़ा, लवा, मयाली के खरियालगांव, लिखवारगांव समेत कई ग्रामीण क्षेत्रों में नियुक्त हुई। उनके जीवन में समाज के प्रति कार्य करने की जो लयबद्धता दिखाई देती थी, संभवतः इसी ग्रामीण समाज के बीच अधिक समृद्ध हुई होगी।
राज्य आंदोलन में वे प्रथम पंक्ति की आंदोलनकारी रही। इतनी कि मुजफ्फरनगर कांड में उन पर लाठियां भी बरसीं। शिक्षक-कर्मचारी संगठन के हर आंदोलन से वे लगातार जुड़ी रहीं। अपने कार्यकाल में वे जिला गाइड कमिश्नर रहीं तथा सेवानिवृत्ति के बाद भी बीएड स्काउट गाइड प्रशिक्षक के रूप में कई महाविद्यालयों में प्रशिक्षण देती रहीं।
वर्तमान में हर वर्ष उत्तराखंड की श्रेष्ठता सूचि में शुमार रहने वाले विद्या मंदिर श्रीकोट को स्थायित्व प्रदान करने में वे तन-मन-धन से जुड़ी रहीं। आज भले ही कीर्तन मंडलियां वोट की राजनीति के लिए उभार पा रही हों, लेकिन एक समय रहा, जब कीर्तन मंडलियांं को सावित्री झिंकवाण ने श्रीनगर के भीतर स्थापित किया।
उनके भीतर कोई शर्म, दुराव या छिपाव कभी नहीं दिखाई दिया। यही बात थी कि गलत व्यक्तित्व उनसे अपनेआप ही दूरी बना लेता। वे जितनी बेबाक थीं, उतनी ही सहृदय।
हमारी शिक्षा व्यवस्था आज कह रही है कि किसी भी विद्यार्थी को फेल नहीं होना चाहिए। शिक्षिका सावित्री के भीतर तब यह पीड़ा थी, जब वे शिक्षिका रहीं। उन्होंने सदैव औसत बच्चे को चिंता के केंद्र में रखा और सामान्य प्रश्नों का हल उन्हें परीक्षा में भी बता दिया करती।
बच्चों को कोई न कोई मंच मिलता रहे, इसके लिए वे सदा प्रयासरत रहीं। वैकुण्ठ चतुर्दशी मेले में रावण का पात्र खेलकर उन्होंने अपनी रंगकर्म क्षमता को भी प्रदर्शित किया। तीन बार ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के बाद भी वे सदैव मृत्यु पर्यंत हॅंसती-मुस्कुराती नजर आईं। वे अपने पीछे पति राज्य सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष हयात सिंह झिंकवाण, बेटे दीपसागर झिंकवाण, बहु पूजा तथा पोते अस्तित्व को छोड़ गई है।
रीजनल रिपोर्टर शिक्षिका सावित्री झिंक्वाण को श्रद्धजलि देता है।