स्टेट ब्यूरो
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार, 9 अगस्त को स्पष्ट रूप से कहा कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण पर क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू नहीं होता है।
कैबिनेट ब्रीफिंग में इसकी घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर व्यापक चर्चा हुई, जिसमें राज्यों को SC और ST को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति दी गई थी। “यह सरकार बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर द्वारा दिए गए संवैधानिक प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है। बाबासाहेब के संविधान में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है।”
केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद वैष्णव ने कहा, “मंत्रिमंडल का सुविचारित निर्णय यह है कि केवल बाबासाहेब के संविधान के अनुसार ही एससी/एसटी को आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।”
बता दें कि, 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की पीठ ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई द्वारा लिखित 6:1 बहुमत के फैसले में फैसला सुनाया था। चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्य सरकारों को अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर SC सूची के भीतर समुदायों को उप-वर्गीकृत करने, अधिक वंचित जातियों के लोगों के उत्थान के लिए आरक्षित श्रेणी के भीतर कोटा देने की अनुमति थी।
न्यायमूर्ति बीआर गवई द्वारा लिखित एक अलग लेकिन सहमत फैसले में कहा गया था कि राज्यों को SC और ST श्रेणियों में भी ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करने और उन्हें आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए।
क्रीमी लेयर की व्यवस्था कब शुरू हुई?
क्रीमी लेयर की शुरुआत पहली बार साल 1993 में हुई। उस समय एक लाख सालाना की आय वाले लोगों को इस कैटेगरी में शामिल किया गया। फिर 2004 में इस सीमा को बढ़ाकर ढाई लाख रुपये किया गया। 2008 में 4.50 लाख रुपये, 2013 में 6 लाख रुपये और 2017 में 8 लाख रुपये तक कर दिया गया।
क्रीमी लेयर में कौन शामिल हैं?
क्रीमी लेयर में संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति, जैसे- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के जज, यूपीएससी के अध्यक्ष और मेंबर, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और इसके मेंबर और मुख्य चुनाव आयुक्त जैसे लोग शामिल हैं। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकार की सेवाओं में ग्रुप ए और ग्रुप बी कैटेगरी के अधिकारियों को भी क्रीमी लेयर में शामिल किया जाता है।