डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे राष्ट्रपति कार्यकाल की नीतियाँ लगातार विवादों में हैं। हाल ही में अमेरिका की मैनहट्टन संघीय अदालत ने ट्रंप प्रशासन को एक बड़ा झटका देते हुए उनके द्वारा घोषित ‘लिबरेशन डे टैरिफ’ को असंवैधानिक बताया है।
ट्रंप ने 2 अप्रैल को “लिबरेशन डे” की घोषणा करते हुए 100 से अधिक देशों पर भारी शुल्क (टैरिफ) लगाए थे, जिनमें भारत जैसे रणनीतिक साझेदार भी शामिल थे। यह मामला अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार और अमेरिकी संविधान के बीच टकराव का केंद्र बन गया है
लेकिन न्यूयॉर्क की संघीय अदालत ने इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए उस पर रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति के पास ऐसा निर्णय अकेले लेने का अधिकार नहीं है।
क्या है ‘लिबरेशन डे टैरिफ’
2 अप्रैल को ट्रंप ने “लिबरेशन डे” की घोषणा की और दावा किया कि अमेरिका को “अन्यायपूर्ण व्यापार समझौतों” से आज़ादी मिलनी चाहिए। इसी आधार पर उन्होंने:
- भारत पर 26% अतिरिक्त टैरिफ लगाया (10% बेसलाइन के अलावा)
- 100 से ज़्यादा देशों पर भारी शुल्क लगाए
- कहा कि यह अमेरिका की आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी है
इस फैसले से भारत के साथ-साथ कई देशों के निर्यातकों को नुकसान होने की आशंका थी।
ये फैसला संविधान के खिलाफ है : अदालत
मैनहट्टन की संघीय अदालत ने ट्रंप के फैसले को अवैध बताते हुए कहा:
- राष्ट्रपति अकेले इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकता
- व्यापार शुल्क लगाने से पहले कांग्रेस की मंजूरी जरूरी है
- यह फैसला संविधान के खिलाफ है
अदालत ने इस पर 7 जुलाई 2025 तक अस्थायी रोक लगा दी है।
ट्रंप की दलीलें अदालत ने खारिज कीं
प्रशासन ने अदालत में तर्क दिया कि यह निर्णय कई देशों के साथ चल रही ट्रेड डील बातचीत का हिस्सा है, जिसे 7 जुलाई तक अंतिम रूप दिया जाना है।
