न्यायपालिका में सेवा देने की इच्छा रखने वाले कानून स्नातकों के लिए, देश की सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया है कि न्यायिक सेवा में प्रवेश के लिए उम्मीदवार का कम से कम तीन वर्षों तक अधिवक्ता (वकील) के रूप में अभ्यास करना आवश्यक है।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के ऐतिहासिक मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया,
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि, ”एक न्यायिक अधिकारी को केवल सैद्धांतिक ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक अनुभव भी होना चाहिए, ताकि वह न्यायिक प्रक्रिया को सही ढंग से समझ सके और निष्पक्ष न्याय कर सके।“
अदालत ने यह भी कहा कि, ”न्यायिक पद पर बैठे व्यक्ति को कोर्ट की कार्यप्रणाली, बहस की शैली, साक्ष्य की प्रक्रिया और अधिवक्ताओं के दृष्टिकोण की समझ होनी चाहिए, जो केवल अदालत में वकालत के अनुभव से ही प्राप्त होती है।“
यह निर्णय देश के सभी उच्च न्यायालयों तथा राज्य सरकारों पर लागू होगा। प्रैक्टिस की अवधि अनंतिम नामांकन की तिथि से मानी जा सकती है। हालांकि, उक्त शर्त 20 मई से पहले हाईकोर्ट द्वारा शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया पर लागू नहीं होगी। यह शर्त केवल भविष्य की भर्तियों पर लागू होगी।
उम्मीदवार उस न्यायालय के प्रधान न्यायिक अधिकारी या उस न्यायालय के किसी अधिवक्ता द्वारा प्रमाणित प्रमाण पत्र प्रस्तुत करेंगे जिसके पास कम से कम 10 साल का अनुभव हो और जो ऐसे जिले के प्रधान न्यायिक अधिकारी या ऐसे स्थान पर प्रधान न्यायिक अधिकारी द्वारा विधिवत समर्थित हो।
सुप्रीम कोर्ट ने जजों के ‘लाॅ कलर्क’ के रूप में अनुभव ले रहे अभ्यर्थियों को तीन साल की प्रैक्टिस में गिने जाने की बात कही।
प्रतिभाओं का होता है हतोत्साहन
पूर्व में वर्ष 1993 में न्यायिक सेवाओं की नियुक्ति के लिए तीन वर्ष के कार्यानुभव को अनिवार्य शर्त के रूप में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लागू किया गया लेकिन, 2002 में शेट्टी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि, ऐसे नियम प्रतिभाओं का हतोत्साहन करते हैं। तीन वर्ष की बाध्यता को हटाया जाना चाहिए। आयोग की सिफारिश पर इस बाध्यता को हटा दिया गया।
उच्च न्यायालयों तथा राज्य सरकारों के सुझाव
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उच्च न्यायालयों तथा राज्य सरकारों से सुझाव मांगे गए, जिस पर छत्तीसगढ़ तथा सिक्किम को छोड़ अधिकतम राज्यों तथा उच्च न्यायालयों ने जज की नियुक्ति के लिए दो या तीन वर्ष के अनुभव को जरूरी बताया।
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि, कुछ ऐसे मामले आए हैं जिनमें सिविल जज (जूनियर डिवीजन) बार के सदस्यों और कर्मियों के साथ दुव्र्यवहार कर रहे हैं और अधिकारियों को प्रक्रियात्मक मुद्दों का सामना करने पर कोर्ट को संभालना मुश्किल हो रहा है। इसलिए जज की नियुक्ति से पूर्व बार में कम से कम 2 साल का अनुभव होना चाहिए।
केरल, मध्यप्रदेश, मणिपुर समेत राज्य सरकारों तथा उच्च न्यायालयों ने वकीलों तथा वादियों के सामने आने वाली व्यवहारिक कठिनाईयों तथा चुनौतियों को समझने के लिए तीन साल की प्रैक्टिस की आवश्यकता को बहाल किए जाने का सुझाव दिया।
तैयारी कर रहे अभ्यर्थी दुविधा में
वर्षों से न्यायिक सेवाओं की तैयारी में जुटे अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से आहत हुए हैं। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि, सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय में सिर्फ विद्यार्थियों को कसौटी पर कसा गया है जबकि अकादमिक स्तर पर तथा काॅलेजो को यह बाध्यता की जानी चाहिए थी कि, लाॅ का अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों को प्रायोगिक तौर पर भी तैयार किया जाना चाहिए।
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