उत्तराखंड के कर्णप्रयाग विकासखंड के कोटी गांव में एक चमत्कारी मेंढे (स्थानीय भाषा में “खाडू”) ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
यह मेंढा चार सींग वाला है, जो कि अत्यंत दुर्लभ माना जाता है। इसका जन्म करीब पांच माह पहले हुआ था, लेकिन दो सप्ताह पहले ही लोगों ने देखा कि इसके चार सींग निकल आए हैं।
कोटी गांव के रहने वाले हरीश लाल के घर में यह मेंढा पैदा हुआ है। इस चमत्कारी खाडू को लेकर पूरे क्षेत्र में उत्सुकता है, और इसे नंदा देवी की प्रसिद्ध राजजात यात्रा से जोड़ा जा रहा है।
नंदा देवी राजजात यात्रा क्या में बनेगा अगुवा
हर 12 साल में आयोजित होने वाली श्री नंदा देवी राजजात यात्रा में एक विशेष चार सींग वाला मेंढा (खाडू) शामिल होता है, जिसे “अगुवा” कहा जाता है। यह अगुवा यात्रा का प्रतीक होता है और देवी के निर्देश से ही इसका चयन होता है।
कोटी गांव की सामाजिक कार्यकर्ता गौतम मिंगवाल ने बताया कि इस गांव में मां नंदा का मंदिर स्थित है और यह गांव राजजात यात्रा का पांचवां प्रमुख पड़ाव भी है, इसलिए यहां इस मेंढे को देवी यात्रा से जोड़कर देखा जा रहा है।
हालांकि, राजजात समिति के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुंवर का कहना है कि अगुवा खाडू का चयन परंपरा और धार्मिक विधियों के अनुसार होता है। अभी बसंत पंचमी पर ही यात्रा का कार्यक्रम घोषित किया जाएगा। इसके बाद अन्य अनुष्ठानों के आधार पर निर्णय लिया जाएगा कि कौन-सा खाडू देवी की अगुवाई करेगा।
नंदा देवी राजजात यात्रा महत्व
नंदा देवी राजजात यात्रा को हिमालय की कुंभ यात्रा भी कहा जाता है। यह यात्रा हर 12 साल में होती है और उत्तराखंड की सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक यात्राओं में से एक है।
इस यात्रा का मूल उद्देश्य नंदा देवी (जो उत्तराखंड की कुलदेवी मानी जाती हैं) को उनके मायके से ससुराल (कैलाश पर्वत) तक विदा करना है। यह यात्रा कुर्मांचल संस्कृति, शिव-पार्वती की परंपरा, और नारी शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
यात्रा में देवी की डोली के साथ हजारों श्रद्धालु कठिन पहाड़ी रास्तों से होकर चलते हैं, और इसमें “खाडू” की भूमिका मार्गदर्शक की होती है — यानी यात्रा में खाडू सबसे आगे चलता है।
गौरतलब है कि, नंदा देवी राजजात यात्रा की अगली तिथि बसंत पंचमी (2026) पर घोषित की जाएगी। उससे पूर्व मौडवी अनुष्ठान और देवी के संकेतों के आधार पर आगे की तैयारी शुरू होगी।