महाभियोग की प्रक्रिया को कानूनी करार
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी थी।
यह रिपोर्ट जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद तैयार की गई थी। जांच में उन्हें प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया था और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की थी।
क्या है पूरा मामला
जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर की गई एक छापेमारी में बड़ी मात्रा में नकद बरामद हुआ था। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक आंतरिक जांच समिति गठित की, जिसने विस्तृत जांच कर एक रिपोर्ट पेश की। समिति की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के आचरण को अनुचित करार दिया गया।
इसके आधार पर तत्कालीन CJI ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी। जस्टिस वर्मा ने इस सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
7 अगस्त को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि: याचिका विचारणीय नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने न सिर्फ जांच प्रक्रिया में पूरा सहयोग नहीं किया बल्कि बाद में समिति की वैधता पर भी सवाल उठाए।
आंतरिक जांच समिति को संवैधानिक और कानूनी मान्यता प्राप्त है। यह कोई ‘एक्स्ट्रा-कांस्टीट्यूशनल’ या समानांतर जांच नहीं है। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा समिति का गठन निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किया गया था।
वीडियो अपलोड पर आपत्ति भी खारिज
सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा ने यह भी आपत्ति जताई थी कि उनके सरकारी आवास पर की गई कार्रवाई की वीडियो क्लिप्स और तस्वीरें सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर क्यों डाली गईं।
कोर्ट ने इस आपत्ति को भी निराधार ठहराते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने समय रहते इसका विरोध नहीं किया, इसलिए इस पर अब कोई सुनवाई नहीं की जा सकती।
FIR की मांग भी नामंज़ूर
अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा द्वारा दायर एक अन्य याचिका में जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिससे यह साफ हो गया कि अदालत इस पूरे प्रकरण को पहले ही गंभीरता से देख चुकी है और कार्रवाई को पर्याप्त मानती है।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद संसद के दोनों सदनों में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया तेज हो सकती है।
- राज्यसभा में विपक्षी सांसदों द्वारा महाभियोग नोटिस पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।
- लोकसभा में भी इस प्रस्ताव को समर्थन मिल रहा है।
- माना जा रहा है कि संसद का अगला सत्र इस प्रक्रिया में निर्णायक हो सकता है।

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