सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले ने उत्तराखंड के सरकारी शिक्षकों के बीच चिंता की लहर पैदा कर दी है। कोर्ट ने 2011 से पहले नियुक्त हुए शिक्षकों के लिए टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना अनिवार्य कर दिया है।
इस फैसले के बाद लगभग 15,000 से अधिक शिक्षकों की सेवाएं अनिश्चितता की जद में आ गई हैं।
उत्तराखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ ने केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि शिक्षक इस फैसले से तनाव में हैं और यदि उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आंदोलन की संभावना है।
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने भी शिक्षकों के हितों का समर्थन करते हुए कहा कि लंबे समय से सेवा दे रहे शिक्षकों के लिए टीईटी परीक्षा पास करना अब बहुत कठिन हो गया है। उन्होंने राज्य सरकार से सुप्रीम कोर्ट में शिक्षकों के पक्ष को मजबूती से पेश करने का आग्रह किया।
कोर्ट का आदेश और शिक्षकों पर असर
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 2011 से पहले नियुक्त सभी शिक्षकों के लिए टीईटी परीक्षा पास करना अनिवार्य है। इस फैसले का असर सबसे ज्यादा उन शिक्षकों पर पड़ा है जिन्होंने 15-20 साल या उससे अधिक समय से सेवा दी है।
ऐसे में, पुराने शिक्षक जिन्हें लंबे अनुभव और उम्र के कारण परीक्षा पास करना कठिन है, उनके सामने नौकरी की सुरक्षा को लेकर गंभीर संकट पैदा हो गया है।
हरीश रावत ने कहा कि नए शिक्षकों के लिए यह परीक्षा उत्तीर्ण करना संभव है, लेकिन पुराने शिक्षकों के लिए यह असंभव होता जा रहा है।
उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य सरकार को केंद्र सरकार की मदद से सुप्रीम कोर्ट में शिक्षकों के हितों की पैरवी करनी चाहिए।
शिक्षक संघ की प्रतिक्रिया
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह चौहान ने बताया कि 2017-18 में भी इस तरह के नियम लागू किए गए थे, लेकिन तब राजनीतिक हस्तक्षेप और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की पहल से शिक्षकों को राहत मिली थी।
उन्होंने कहा कि अब भी वही परिस्थितियां हैं और 55-60 वर्ष की उम्र वाले शिक्षक परीक्षा पास नहीं कर सकते।
शिक्षक संघ ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार और केंद्र उचित कदम नहीं उठाते, तो आंदोलन की राह पर शिक्षक मजबूर हो सकते हैं।













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