केदार घाटी के सभी शक्तिपीठों में शारदीय नवरात्रों के प्रथम दिन भगवती दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा-अर्चना की गई।
इस अवसर पर सभी शक्तिपीठों में भक्तों की भारी भीड़ रही।
विद्वान आचार्यों की वेद ऋचाओं, भक्तों की जयकारों और महिलाओं के धार्मिक भजनों से मंदिरों का वातावरण भक्तिमय बना हुआ था।
सिद्धपीठ कालीमठ, कोटी माहेश्वरी, चामुण्डा देवी, काली शिला, राकेश्वरी मंदिर, राजराजेश्वरी मंदिर सहित सभी शक्तिपीठों में सैकड़ों भक्तों ने पूजा-अर्चना कर मनौती मांगी और विश्व समृद्धि व क्षेत्र की खुशहाली की कामना की।

कालीमठ तीर्थ में विशेष पूजा
पावन पतित सरस्वती नदी के किनारे बसे सिद्धपीठ कालीमठ में भी सैकड़ों भक्तों ने पूजा-अर्चना की। देहरादून निवासी अजय डबराल और ऋषिकेश निवासी संजीव भट्ट के सहयोग से कालीमठ मंदिर सहित सहायक मंदिरों को लगभग 8 कुंतल फूलों से सजाया गया।
राज्य मंत्री चंडी प्रसाद भट्ट, पूर्व राज्य मंत्री अशोक खत्री, बद्री केदार मंदिर समिति सदस्य श्रीनिवास पोस्ती सहित सैकड़ों भक्तों ने सिद्धपीठ कालीमठ पहुंचकर पूजा-अर्चना की।
मंदिर प्रबंधक प्रकाश पुरोहित ने बताया कि भगवती दुर्गा के तीनों रूपों की पूजा होने से श्रद्धालुओं को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
वेदपाठी रमेश चंद्र भट्ट ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ तीर्थ में भगवती दुर्गा के महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती तीनों रूपों की पूजा एक साथ होने से महाकाली तीर्थ में पूजा का विशेष महत्व है।
पंडित दिनेश चंद्र गौड़ ने कहा कि युगों से प्रज्ज्वलित धुनी की भस्म धारण करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
मठापति अब्बल सिंह राणा ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ में वर्ष भर भक्तों की आवाजाही लगी रहती है और सभी भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
भगवती काली के परम भक्त देवानंद गैरोला ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ पतित पावन सरस्वती नदी के किनारे स्थित है और यहां भगवती के तीनों स्वरूपों की पूजा की जाती है।

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