जगमोहन रौतेला
उत्तराखण्ड में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सरकार की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। अभी अधीनस्थ चयन सेवा आयोग की परीक्षा में पेपर लीक का मामला जहां प्रदेश सरकार के गले की फांस बना ही था।
वहीं अब कुछ मतदाताओं के एक से अधिक मतदाता सूची में नाम वाले मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से प्रदेश सरकार की फजीहत और बढ़ गई है।
गत 26 सितम्बर 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखण्ड में एक से अधिक मतदाता सूची में नाम वाले प्रत्याशियों के पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक वाले उच्च न्यायालय के आदेश पर अपनी मोहर लगा दी।
सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य निर्वाचन आयोग की याचिका खारिज कर दी।
निर्वाचन आयोग ने कई मतदाता सूची में नाम वाले उम्मीदवारों को पंचायत चुनाव लड़ने की अनुमति देते हुए स्पष्टीकरण परिपत्र (सर्कुलर) जारी किया था। जिस पर उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी।
न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायाधीश संदीप मेहता की पीठ ने निर्वाचन आयोग पर बेवजह याचिका दायर करने पर दो लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। इससे राज्य निर्वाचन आयोग के साथ ही प्रदेश के भाजपा सरकार की भी जमकर किरकिरी हुई है।
प्रदेश सरकार की समझ में नहीं आ रहा है कि वह इस पर किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करे? इस मामले में 27 सितम्बर तक प्रदेश सरकार और भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई।
न्यायाधीश विक्रम नाथ ने राज्य निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता से कहा कि आप वैधानिक प्रावधान के विपरीत निर्णय कैसे दे सकते हैं?
उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी शक्ति सिंह भर्तवाल की ओर से दायर एक याचिका में यह आदेश पारित किया था।
जिसमें ऐसे कई उदाहरणों पर प्रकाश डाला गया था, जहां कई मतदाता सूची में नाम वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जा रही है।
राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से इस बारे में जारी स्पष्टीकरण में कहा गया था कि किसी उम्मीदवार का नामांकन पत्र केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जाएगा कि उसका नाम एक से अधिक ग्राम पंचायत या प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र या नगर निकाय की मतदाता सूची में शामिल है।
उच्च न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग के इस सर्कुलर को उत्तराखण्ड पंचायती राज अधिनियम- 2016 का उल्लंघन माना था।
न्यायालय ने कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग का स्पष्टीकरण प्रथम दृष्टया अधिनियम की धारा – 9 (6) और (7) के विरुद्ध प्रतीत होता है।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि जब विधान स्पष्ट रूप से एक से अधिक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र या एक से अधिक मतदाता सूची में मतदाता के पंजीकरण पर रोक लगाता है और यह एक वैधानिक प्रतिबंध है, तो राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अब दिया गया स्पष्टीकरण उत्तराखण्ड पंचायती राज अधिनियम – 2016 की धारा-9 की उप धारा – 6 और उप धारा – 7 के तहत प्रतिबंध के विरुद्ध प्रतीत होता है।
इसके बाद स्पष्टीकरण पर इस निर्देश के साथ रोक लगा दी थी कि इस पर कार्रवाई नहीं की जाएगी। उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ उत्तराखण्ड का राज्य निर्वाचन आयोग सर्वोच्च न्यायालय पहुॅच गया था।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने 26 सितम्बर को कहा कि कॉग्रेस शुरू से ही यह कहती रही है कि भाजपा ने नगर निकाय और पंचायत चुनाव की मतदाता सूची से खिलवाड़ कर फर्जी मतदान का रास्ता अपना कर वोट चोरी की है।
सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखण्ड राज्य निर्वाचन आयोग पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगाकर स्पष्ट कर दिया है कि आयोग ने प्रदेश सरकार के दबाव में नियमों को ताक पर रख कर काम किया।
यह मामला पिछले दिनों तब चर्चा में आया था, जब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कई उम्मीदवारों के नाम एक साथ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की मतदाता सूची में दर्ज पाए गए।
कांग्रेस ने आयोग से ऐसे उम्मीदवारों का नामांकन रद्द करने की मॉग की थी, लेकिन आयोग ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया था। इसके बाद चुनाव लड़ने वाले कुछ उम्मीदवारों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
उनकी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने भी साफ निर्देश दिया था कि उत्तराखण्ड पंचायती राज अधिनियम के तहत दोहरी मतदाता सूची वाले उम्मीदवारों की उम्मीदवारी रद्द की जाए।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने याद दिलाया कि कांग्रेस ने 6 जुलाई 2025 को ही राज्य निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर निकाय और पंचायत चुनाव की मतदाता सूची में मतदाताओं और प्रत्याशियों के दोहरे नाम का मुद्दा उठाया था।
माहरा ने कहा कि अब सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग को कानून के विपरीत सर्कुलर जारी करने और बेवजह याचिका दाखिल करने पर फटकार लगाने के साथ ही जुर्माना भी लगाया है। यह एक संवैधानिक संस्था के लिए शर्मनाक स्थित है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया में माले के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि इससे स्पष्ट हुआ है कि उत्तराखण्ड के निर्वाचन आयोग ने राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में प्रदेश सरकार की शह पर वोटों और उम्मीदवारों की चोरी की है।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का संचालन आयोग ने भाजपा सरकार के दबाव में अवैधानिक तरीके से किया और उच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना की।
मैखुरी ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद निर्वाचन आयुक्त को बर्खास्त करने की मॉग की। उन्होंने कहा कि न्यायालय के निर्णय से स्पष्ट है कि राज्य के निर्वाचन आयुक्त अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को निभाने में न केवल पूरी तरह नाकाम रहे हैं, बल्कि उन्होंने प्रदेश सरकार के इशारे पर एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गलत चुनाव की ओर धकेला। जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद त्रिस्तरीय पंचायत के उन प्रतिनिधियों के निर्वाचन पर तलवार लटक गई है, जिनका नाम दो-दो जगह मतदाता सूची में था।
अब ऐसे निर्वाचित प्रतिनिधियों का निर्वाचन रद्द करने की मॉग को लेकर चुनाव में उनके विरोधी रहे उम्मीदवार उच्च न्यायालय जा सकते हैं। इसके बाद इन लोगों के निर्वाचन का फैसला होगा।

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