उत्तराखंड के पौड़ी के आसमान से गुजरता हुआ एक धूमकेतु इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। विशेषज्ञों की मानें तो धूमकेतु सी/2023- ए3 (C/2023-A3) खगोल विज्ञान में इस साल की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक माना जा रहा है। इसे त्सुचिनशान-एटलस (Tsuchinshan-Atlas) के नाम से भी जाना जाता है।
इस धूमकेतु की खोज बीते वर्ष 9 जनवरी, 2023 को चीन में पर्पल माउंटेन वेधशाला (Purple Mountain Observatory) द्वारा की गई थी, और एक महीने बाद दक्षिण अफ्रीका में क्षुद्रग्रह स्थलीय-प्रभाव अंतिम चेतावनी प्रणाली (Asteroid Terrestrial-Impact Last Alert System) द्वारा स्वतंत्र रूप से इसका निरीक्षण किया गया था।
सी/2023 ए3, जिसे त्सुचिनशान-एटलस के नाम से भी जाना जाता है और जिसे “शताब्दी का धूमकेतु” माना जाता है। इसकी विशेषताओं के कारण, खगोलविदों का मानना है कि यह असाधारण रूप से उज्ज्वल होगा, 1986 में हैली के धूमकेतु या 2020 में NEOWISE के समान।
यह धूमकेतु बीते 27 सितंबर को अपने पेरिहीलियन (सूर्य के सबसे नजदीकी बिंदु) से सफलतापूर्वक गुजरा। उम्मीद यह है कि, आगामी 12 अक्तूबर को यह पृथ्वी के नजदीक से गुजरेगा जो कि अद्भुत नजारे पेश करेगा। इस धूमकेतु को कई सालों से खगोलीय घटनाओं पर नजर रख रहे खिर्सू निवासी व प्रोफेशनल फोटोग्राफर प्रीतम सिंह नेगी ने कैमरे में कैद किया है।
जानें क्या है धूमकेतु
धूमकेतु सौरमण्डलीय निकाय है जो पत्थर, धूल, बर्फ़ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खण्ड होते है। यह ग्रहो के समान सूर्य की परिक्रमा करते है। छोटे पथ वाले धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा एक अण्डाकार पथ में लगभग 6 से 200 वर्ष में पूरी करते है। कुछ धूमकेतु का पथ वलयाकार होता है और वो मात्र एक बार ही दिखाई देते है। लम्बे पथ वाले धूमकेतु एक परिक्रमा करने में सहस्त्र वर्ष लगाते है।
धूमकेतु के तीन मुख्य भाग होते है = 1-नाभि ( Nucleus), 2-कोमा ( Coma), 3-पूंछ (Tail)
नाभि धूमकेतु का केन्द्र होता है जो पत्थर और बर्फ का बना होता है। नाभि के चारों ओर गैस और धूल के बादल को कोमा कहते है। नाभि तथा कोमा से निकलने वाली गैस और धूल एक पूंछ का आकार ले लेती है।
जब धूमकेतु सूर्य के नजदीक आता है, सौर-विकिरण (solar radiation) के प्रभाव से नाभि की गैसों का वाष्पीकरण हो जाता है। इससे कोमा का आकार बढ़कर करोड़ों मील तक हो जाता है। कोमा से निकलने वाली गैस और धूल अरबों मील लम्बी पूंछ का आकार ग्रहण कर लेती है। सौर-हवा के कारण यह पूंछ सूर्य से उल्टी दिशा में होती है। जैसे-जैसे धूमकेतु सूर्य के नजदीक आता है, पूंछ का आकार बढ़ता जाता है।