उमा घिल्डियाल
खरीफ की फसल घर में आने के बाद अन्नलक्ष्मी के गृह आगमन पर दीपोत्सव मनाया जाता है। हम चाहे दिनों से धनतेरस, नरकचतुर्दशी, लक्ष्मी पूजा, गोवर्धन और अन्त में यमद्वितीया अर्थात् भैयादूज मना रहे हैं। इन चार दिनों से हमारे चालीस मजदूर उत्तरकाशी में एक सुरंग में फँसे हैं। उन्होंने और उनके घरवालों ने इस त्यौहार में क्या किया होगा, यह तो वे बेचारे ही जानें, परन्तु यही संसार का नियम है, सोच कर हमने खूब आतिशबाज़ी भी की, दीपक भी जलाये, पूजा की और मिठाइयाँ भी खाईं। क्या उन मजदूरों के लिये प्रार्थना भी की?…पता नहीं। सम्भवतः की हो, हालांकि अब सेना इस कार्य में जुट गई है, तो उम्मीद है कि सभी चालीस मजदूर सकुशल शीघ्र सुरंग से बाहर होंगे। वे श्रमिक शीघ्र ही सकुशल अपने परिवार से मिलें, यही प्रार्थना करते हुये हम यम द्वितीया की ओर बढ़ते हैं।
दीपावली पाँच दिन का त्यौहार है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली मना कर, शुक्लपक्ष की द्वितीया को यह त्यौहार मनाया जाता है। पद्मपुराण के अनुसार, यमराज और कृष्णप्रिया यमुना सूर्यदेव की सन्तानें हैं। पृथ्वी पर आने के पश्चात् यमुना अपने भाई को बारम्बार अपने घर बुलाती रही, परन्तु वे नहीं आये। दीर्घ काल के पश्चात् जब यम अपनी बहिन के घर आये, तो यमुना बहुत प्रसन्न हुई। उसने भाँति-भाँति के पकवान बनाये, यम को टीका लगाया और आग्रहपूर्वक भोजन कराया। यमराज ने प्रसन्न होकर वरदान माँगने को कहा। यमुना अपना आँचल फैला कर बोली, ”भ्राता! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कृपा करके उन जीवों को मुक्त कर दीजिए, जो अपने कर्मफल के कारण आपके लोक में यम यातना पा रहे हैं। आज के दिन जो भाई अपनी बहिन के घर जाकर भोजन ग्रहण करें और बहिन का आशीर्वाद प्राप्त करें। साथ ही जो भाई अपनी बहिन के साथ मेरे जल में भैयादूज के दिन स्नान करे, उसे अल्पमृत्यु प्राप्त न हो। यमराज यमुना को वरदान देकर अपने लोक चले गये। लोकमान्यता है कि तब से लेकर आज तक यह त्यौहार भाई-बहिन के स्नेह के प्रतीक के रूप में मनाया जा रहा है। यमुना के किनारे इस दिन स्नान करते भाई-बहिनों की भीड़ मनोमुग्धकारी लगती है।
रक्षाबन्धन में बहिन भाई के घर जाती है और अपनी रक्षा का वचन लेकर आती है, परन्तु भैया दूज पर भाई बहिन के घर जाता है, भोजन करता है और बहिन के आशीर्वाद का रक्षाकवच पहन कर आता है। यही है हमारे त्योहारों का आत्म तत्त्व, जिसे समझना बहुत आवश्यक है।
यमुना के दूसरे भाई शनिदेव
यमुना यमुनोत्री से निकलती है। यमुनोत्री से पाँच किमी.नीचे जानकी चट्टी के पास खरसाली गाँव है, जहाँ यमुना के दूसरे भाई शनिदेव का निवास स्थान है। यमुनोत्री के कपाट भैयादूज के दिन ही छह माह के लिए बन्द हो जाते हैं और यमुना छह माह के लिये भोगमूर्ति के रूप में अपने दूसरे भाई शनिदेव के पास निवास करती है। कपाट खुलने पर शनिदेव स्वयं अपनी बहिन को यमुनोत्री तक छोड़ने जाते हैं। यही है हम मानवों की आध्यात्मिक यात्रा, जहाँ प्रकृति सदैव हमारे साथ बनी रहती है।