सोमवार को ड्रैगन ग्रेस अंतरिक्ष यान के अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से अलग होने के साथ ही एक्सिओम-4 मिशन के चारों अंतरिक्ष यात्रियों की धरती पर वापसी की यात्रा शुरू हो गई।
भारतीय समयानुसार यह प्रक्रिया शाम 4:45 बजे शुरू हुई, जिसमें करीब 10 मिनट की देरी हुई। वस्टर्स को दो बार सक्रिय किया गया ताकि यान सुरक्षित रूप से स्टेशन से दूरी बना सके। यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि भारत के लिए भी गर्व का क्षण बना क्योंकि इस दल में शुभांशु शुक्ला भी शामिल थे।
अंतरिक्ष स्टेशन पर 18 दिन का सफर
चारों अंतरिक्ष यात्री 26 जून को आईएसएस से जुड़े थे। वहां 18 दिन बिताते हुए उन्होंने पृथ्वी की कुल 288 बार परिक्रमा की और लगभग 76 लाख मील की दूरी तय की। इस दौरान उन्होंने विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों और अनुसंधानों में हिस्सा लिया। स्टेशन से अलग होने से दो घंटे पहले सभी यात्री ड्रैगन यान में सवार हो गए और स्पेससूट पहनकर वापसी के लिए तैयार हो गए। अपराह्न 2:37 बजे हैच को बंद कर दिया गया, जिससे उनकी वापसी यात्रा की औपचारिक शुरुआत हो गई।
मिशन में शामिल प्रमुख चेहरे
एक्सिओम-4 मिशन में भारत के शुभांशु शुक्ला के साथ अमेरिका की अनुभवी कमांडर पैगी गव्हिटसन, पोलैंड के स्लावोज उज्नान्स्की-विस्नीव्स्की और हंगरी के टिबोर कापू शामिल थे। यह मिशन निजी अंतरिक्ष उड़ानों में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। भारत के लिए यह मिशन इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि 1984 के बाद पहली बार कोई भारतीय अंतरिक्ष में गया है।
वापसी की सुरक्षित योजना
आईएसएस से अलग होने के बाद, यान धीरे-धीरे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की ओर बढ़ रहा है। अंतरिक्ष यात्रियों ने सुरक्षित क्षेत्र में पहुंचने के बाद स्पेससूट उतार दिए और वापसी की लगभग 22.5 घंटे की आरामदायक यात्रा की शुरुआत की। डी-ऑर्बिट प्रक्रिया मंगलवार को भारतीय समयानुसार दोपहर 3:01 बजे शुरू होगी, जिसके बाद यान कैलिफ़ोर्निया तट के पास समुद्र में उतरने की योजना है।
भावुक विदाई और उम्मीदों की वापसी
रविवार को आईएसएस पर विदाई समारोह आयोजित किया गया, जहां शुभांशु शुक्ला ने भावुक होकर कहा – “जल्दी ही धरती पर मुलाकात करते हैं।” उनका यह बयान न सिर्फ मिशन की सफलता का संकेत था, बल्कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी का प्रतीक भी बना।
इस मिशन ने यह साबित कर दिया है कि अब अंतरिक्ष यात्राएं सिर्फ सरकारी एजेंसियों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि निजी कंपनियों और देशों के संयुक्त सहयोग से अब वैश्विक नागरिक भी ब्रह्मांड की सीमाओं को छूने लगे हैं।
