सहकारिता के नाम पर ठगी

  • भारत सरकार के कृषि एवं को-ऑपरेशन मंत्रालय में रजिस्टर्ड
  • मल्टी-स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटीज़ को केंद्र सरकार के अधीन रजिस्ट्रार करता है रेगुलेट
  • सोसायटी पैसा जिला सहकारी बैंकों में जमा न कर राष्ट्रीकृत बैंकों में जमा करती थी जमा

एलयूसीसी याने लोनी अर्बन मल्टी स्टेट क्रेडिट एवं थ्रिफ्ट कोऑपरेटिव सोसायटी लोनी जिला गाजियाबाद उत्तरपदेश, का पंजीकरण भारत सरकार के कृषि एवं कोऑपरेशन मंत्रालय में हुआ है।

यह पंजीकरण मल्टी स्टेट कॉपरेटिव सोसायटी एक्ट 2002 के तहत वर्ष 2012 में हुआ। पंजीकरण पत्र के अनुसार, समिति का कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश और दिल्ली है।

जनवरी, 2017 में एलयूसीसी को उत्तराखंड में भी काम करने का अनापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया गया। 06 जनवरी 2017 को तत्कालीन निबंधक विजय कुमार ढौंडियाल के हस्ताक्षर से जारी पत्र में इसकी इजाजत दी है गई है।

सोसायटी ने 2017 से ही उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में अपना काम करना शुरु किया। बैंक पोस्ट ऑफिस से अधिक ब्याज देने का वादा एवं मोटे कमीशन पर एजेंट बनाकर सोसायटी ने जल्द ही पूरे गढ़वाल मंडल में अपना मजबूत नेटवर्क स्थापित कर दिया।

सोसायटी जरूरतमंदों को ऋण देने के बजाय बचत का काम करने लगी। आम लोगों को ज्यादा ब्याज वाली आरडी, एफडी, पेंशन, सुकन्या योजनाएं धड़ल्ले से देने लगी। ज्यादा ब्याज के लालच में लोग एलयूसीसी के जाल में फंसते चले गए।

सरकारी उदासीनता से लूटे एलयूसीसी के निवेशक

  • दीपा देवी एक ग्रहणी हैं। पति दिल्ली में किसी होटल में काम करते हैं। सीमित वेतन में से खर्च कम हो इसलिए पति सिर्फ सालभर में एक बार ही घर आते हैं। पति द्वारा घर खर्च के लिए भेजे गए पैसों से थोड़ी थोड़ी बचत कर दीपा देवी ने अक्टूबर 2025 में ज्यादा ब्याज के लालच में एलयूसीसी में एक लाख रुपए की एफडी बनवाई। कुछ ही महीनों बाद पता चला कि एलयूसीसी बंद हो गई है। अब दीपा देवी का रो-रोकर बुरा हाल है। जिस एक लाख को जोड़ने में उसे कई साल लगे वे अब लुटते हुए नजर आ रहे हैं।
  • सुनीता एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं। कुल आठ हजार महीना वेतन मिलता है। किसी तहत से उसने एलयूसीसी में दोस्त के कहने पर पांच साल की आरडी की थी। 60 हजार जमा करने पर 80 हजार मिलने का वादा था। 44 हजार जमा हो चुके थे। पाई-पाई जोड़कर बड़ी पूंजी बनने का सपना सच साबित होता हुआ नजर आने लगा था। लेकिन अब पैसे मिलने की उम्मीद धुंधली होती जा रही है।
  • परमेश्वरी देवी 2017 में एल्यूसीसी में बतौर निवेशक जुड़ी, वर्ष 2018 में एजेंट बनी बतौर एजेंट अच्छा कार्य किया तो उन्हें 2022 में मैनेजर बना दिया गया। एक सौ सत्तर ग्राहकों के 80 लाख रुपए उनके उनके माध्यम से एलयूसीसी में जमा हैं। लोग अब पैसे मांगने घर आ रहे हैं। लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं। धमकी भी दे रहे हैं। जीवन का सुख चैन सब गायब है। कहती हैं अपराधी की तरह आत्मग्लानि में जी रही हूं। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।

ऐसी सैकड़ों कहानियां एलयूसीसी के बंद होने पर पूरे गढ़वाल मंडल में सुनाई दे रही हैं। लोगों के दस-बीस हजार से लेकर पचास लाख तक की रकम डूबने की खबरें हैं।

दीपा, सुनीता, परमेश्वरी देवी जैसे हजारों लोग उत्तराखंड विशेष कर गढ़वाल मंडल में एलयूसीसी की ठगी का शिकार कर हुए हैं। जिसकी धनराशि करोड़ों में है।

सदस्यता आधारित मॉडल होता है कॉ-ओपरेटिव सोसायटी का

भारत में कॉपरेटिव (सहकारी) एवं थ्रिफ्ट सोसायटी का मुख्य काम आम लोगों को वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराना है, खासकर उन लोगों को जो पारंपरिक बैंकों की पहुंच से बाहर हैं। इनका संचालन “सहकारिता के सिद्धांतों” पर होता है, यानी सदस्य ही इसके मालिक होते हैं और यह लाभ कमाने की बजाय सदस्यों की आर्थिक भलाई को प्राथमिकता देती है।

सोसायटी सदस्यों को नियमित रूप से छोटी-छोटी रकम जमा करने के लिए प्रोत्साहित करती है एवं एकत्रित बचत को जरूरतमंद सदस्यों को ऋण के रूप में देती है

सदस्यता आधारित मॉडल होने के कारण यह संस्थाएं अपने सदस्यों को ही लाभ देती हैं। मुनाफा होने पर उसे लाभांश के रूप में सदस्यों में बाँटा जाता है।

मल्टी-स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटीज़ को केंद्र सरकार के अधीन रजिस्ट्रार रेगुलेट करता है।

NBFC की तरह सभी क्रेडिट सोसायटी को RBI द्वारा रेगुलेट नहीं किया जाता, जिससे धोखाधड़ी की संभावना रहती है। एलयूसीसी द्वारा की गई धोखाधड़ी इसी कारण हुई। सोसायटी को काम करने के इजाजत तो दे दी गई लेकिन उसके काम पर नजर नहीं रखी गई।

उत्तराखंड में इस सोसायटी को काम करने की इजाजत इस शर्त के साथ दी गई थी वह अपनी समस्त जमा रकम जिला सहकारी बैंकों में जमा करवाएगी। लेकिन बताया जा रहा है कि सोसायटी अपना पैसा राष्ट्रीकृत बैंकों में जमा करवा रही थी। ताकि उत्तराखंड से बाहर बैठकर इस पैसे को आसानी से ठिकाने लगाया जा सके।

उत्तराखंड में राज्य के बाहर की एक सोसायटी लगातार काम करने की शर्तों का उल्लंघन करती जा रही थी और उत्तराखंड के सहकारिता मंत्रालय को इसकी कोई खबर नहीं थी। जो सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

सोसायटी को कम ब्याज पर जरूरतमंदों को लोन देना था, वो भी नहीं किया जा रहा था।

पीड़ित दे रहे धरना-प्रदर्शन

एलयूसीसी द्वारा ठगी के इस मामले में पीड़ितों द्वारा लगातार आंदोलन एवं धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। लेकिन राज्य सरकार से उसे कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है।

राज्य के सहकारिता मंत्री डॉ.धन सिंह रावत लगातार पीड़ितों से मिलने से इनकार कर रहे हैं। वो इसके लिए कांग्रेस पार्टी को ही दोषी बता रहे हैं जिसकी सरकार के समय एलयूसीसी को उत्तराखंड में काम करने की इजाजत मिली।

इस आरोप पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का कहना है कि पिछले आठ सालों से प्रदेश में भाजपा की सरकार है और इसी अवधि में एलयूसीसी का कारोबार खूब फला-फूला।

एक सोसायटी जनता को ज्यादा ब्याज का लालच देकर करोड़ों रुपया इकट्ठा कर रही थी और सरकार को जानकारी न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है। उनका आरोप है कि इस ठगी में सरकार में बैठे लोग भी शामिल हैं।

जानकारी के अनुसार, एलयूसीसी में ठगी के मास्टर माइंड देश छोड़कर विदेश जा चुके हैं। सवाल ये उठता है कि सरकार के खिलाफ पोस्ट लिखने वालों पर एलआईयू कड़ी नजर रहती है, और करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करने वालों पर नहीं रख रही तो ये अपने आप में बहुत गंभीर मामला है।

इस प्रकरण में हो रहे आंदोलन का नेतृत्व कर रही सामाजिक कार्यकर्ता सरस्वती देवी का खुद का पैसा फंसा भी इसमें फंसा है। पिछले दिनों इस प्रकरण पर उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाक़ात की पीड़ितों का पैसा दिलाने की मांग की एवं विदेश में भाग चुके दोषियों के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिक जारी करवाने की भी मांग की है।

एलयूसीसी घोटाला एक चेतावनी है कि सहकारी संस्थाओं की ढीली निगरानी, राजनीतिक संरक्षण, और सरकारी तंत्र की उदासीनता मिलकर आम जनता की मेहनत की कमाई को कैसे लील सकते हैं। जरूरत है सख्त निगरानी, पारदर्शिता और जवाबदेही की, ताकि भविष्य में इस तरह की घटना न घटे।

https://regionalreporter.in/hearing-on-lucc-scam-in-uttarakhand-held-in-high-court/
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सीताराम बहुगुणा
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