25 अप्रैल को गाडूघड़ा तेलकलश यात्रा हुई राजदरबार से रवाना
11 मई को पहुंचेगी बदरीनाथ धाम
रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो
श्री बदरीनाथ धाम गाडू घड़ा तेलकलश यात्रा A Tradition for badarinarayan pooja बृहस्पतिवार 25 अप्रैल देर शाम को नरेंद्र नगर राज दरबार से ऋषिकेश पहुंचेगी। तेलकलश यात्रा 11 मई शाम को विभिन्न पड़ावों से होते हुए श्री बदरीनाथ धाम पहुंचेगी तथा 12 मई को श्री बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुलेंगे।
ज्ञातव्य है कि इस वर्ष यात्रा 25 अप्रैल राज महल नरेन्द्र नगर से गाडू घड़ा तेलकलश यात्रा शुरू होगी। इसी दिन राजमहल नरेन्द्रनगर में परंपरानुसार श्री डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत पदाधिकारियों की उपस्थिति में महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह तथा सुहागिन महिलाओं द्वारा भगवान बदरीविशाल के अभिषेक हेतु तिलों का तेल पिरोकर चांदी के कलश में रखा जायेगा। पूजा-अर्चना पश्चात राजमहल द्वारा तेल का कलश गाडू घड़ा श्री डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत पदाधिकारियों को सौंपा जायेगा।
गाडू घड़ा तेलकलश यात्रा पड़ाव
श्री बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया कि डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत पदाधिकारीगण गाडू घड़ा- तेलकलश को लेकर राजमहल नरेन्द्र नगर से 25 अप्रैल देर शाम श्री बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति के रेलवे रोड स्थित चेला चेतराम धर्मशाला में रात्रि विश्राम हेतु पहुंचेगे। शुक्रवार 26 अप्रैल प्रातः से दोपहर तक गाडू घड़ा तेल कलश मंदिर समिति की रेलवे रोड ऋषिकेश स्थित धर्मशाला में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रहेगा। इस अवसर पर श्री बदरीनाथ – केदारनाथ मंदिर समिति पदाधिकारीगण तेलकलश के दर्शन को पहुंचेगे। तथा पदाधिकारीगण एवं इसी दिन 26 अप्रैल को ही दोपहर बाद तेलकलश श्री शत्रुघ्न मंदिर राम झूला मुनिकीरेती प्रवास हेतु प्रस्थान होगा। 27 अप्रैल को दोपहर बाद मुनिकी रेती से तेलकलश रात्रि प्रवास हेतु मंदिर समिति के डालमिया धर्मशाला श्रीनगर (गढ़वाल) पहुंचेगा। 28 अप्रैल को तेलकलश पूजा-अर्चना पश्चात श्रीनगर गढ़वाल से डिमरी पुजारियों के मूल गांव डिम्मर स्थिति श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर पहुंचेगा जहां 7 मई तक गाडू घड़े की नित्य पूजा-अर्चना होगी। बुधवार 8 मई को डिम्मर से गाडू घड़ा तेलकलश विभिन्न पड़ावों से होकर रात्रि विश्राम हेतु गरुड़ गंगा के निकट पाखी गांव पहुंचेगा 9 मई को गाडू घड़ा तेल कलश टंगणी-रविग्राम होते हुए रात्रि प्रवास हेतु श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ पहुंचेगा।
10 मई को शीतकालीन गद्दी स्थल पांडुकेश्वर पहुंचेगी गाडूघड़ा
10 मई को श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ में पूजा-अर्चना भोग के पश्चात गाडू घड़ा तेल कलश आदि गुरु शंकराचार्य जी की गद्दी तथा बदरीनाथ धाम के रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी सहित रात्रि प्रवास हेतु योग बदरी पांडुकेश्वर पहुंचेगा। 11 मई को योग ध्यान बदरी पांडुकेश्वर से गाडू घड़ा तेल कलश सहित आदि गुरु शंकराचार्य गद्दी, श्री उद्धव जी श्री कुबेर जी तथा बदरीनाथ धाम के रावल शायंकाल को श्री बदरीनाथ धाम पहुंचेगे। रविवार 12 मई को सुबह 6 बजे श्री बदरीनाथ धाम के कपाट तीर्थयात्रियों के दर्शनार्थ खुलेंगे। गाडू घड़ा तेलकलश यात्रा के समय श्री डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत अध्यक्ष आशुतोष डिमरी, उपाध्यक्ष भास्कर डिमरी, हरीश डिमरी, सुरेश डिमरी, सुभाष डिमरी,पूर्व अध्यक्ष विनोद डिमरी, सचिव भगवती डिमरी,ज्योतिष डिमरी,संजय डिमरी, विपुल डिमरी सहित डिमरी पंचायत के सदस्य एवं श्रद्धालु मौजूद रहेंगे।
गाडू घड़ा कलश यात्रा इतिहास-
उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में महत्त्वपूर्ण धाम बदरीनाथ जी हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व एक परंपरा है। भगवान बदरी विशाल के अभिषेक पूजा में जो तिल का तेल प्रयोग में लाया जाता है, उसे हर साल विधि-विधान और पूजा-अर्चना के बाद ही पिरोया जाता है। जिस कलश में इस तेल को रखा जाता है, उसे गढ़वाली में ‘‘गाडू घड़ा” कहते हैं। सदियों से चली आ रही यह परंपरा नरेंद्र नगर स्थित पूर्व टिहरी नरेश के राजमहल में निभाई जाती है। गढ़वाल में बदरी धाम है, इसलिए बदरीधाम की यात्रा का शुभ मुहूर्त व अन्य परंपरा अब भी टिहरी नरेश के यहां से शुरू की जाती है। हर साल बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर टिहरी नरेश की जन्म कुंडली और ग्रह नक्षत्रों की गणना कर पुरोहित तेल पिरोने और बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि और समय निर्धारित करते हैं। तिल के तेल को सुहागिन महिलाएं ही पिरोती हैं।
छह माह तक लगता है इसी तेल का अभिषेक
इसके बाद तेल को विशेष जड़ी-बूटी के साथ आंच में पकाया जाता है, ताकि तेल में पानी की मात्रा न रह सके। इस तरह राज दरबार में पारंपरिक रीति-रिवाज से तेल पिरोने की परंपरा पूरी होने के बाद तेल से भरे गाडू घड़ा को जनपद चमोली स्थित डिमरियों के गांव डिम्मर ले जाया जाता है। तत्पश्चात गाडू घड़ा डिम्मर गांव पहुंचने के बाद पूजा-अर्चना के बाद शक्ति पीठ खांडू देवता के संरक्षण में लक्ष्मी-नारायण मंदिर में स्थापित किया जाता है। कलश कुछ दिन वहीं रहता है। इसके बाद गाडू घड़ा तेल कलश जोशीमठ और फिर पांडुकेश्वर पहुंचता है। जबकि जोशीमठ से बदरीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल आदि शंकराचार्य की गद्दी के साथ पांडुकेश्वर पहुंचते हैं। अगले दिन पांडुकेश्वर से गुरुजी, उद्धवजी व कुबेरजी की डोलियां भी तेल कलश व आदि शंकराचार्य की गद्दी के साथ बदरीनाथ पहुंचती हैं। इसके बाद तय तिथि के दिन ब्रह्ममुहूर्त में श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खोल दिए जाते हैं। उसी समय गाडू घड़ा को भगवान बदरी विशाल के गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है। तिल के तेल से भरा हुआ कलश ही भगवान बदरी विशाल के अभिषेक पूजा में छह माह के काल के दौरान प्रयोग में लाया जाता है।