सुप्रीम कोर्ट में कांवड़ यात्रा मार्ग पर क्यूआर कोड स्टिकर के सरकारी आदेश को चुनौती

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से जवाब तलब, अगली सुनवाई अगले मंगलवार को

श्रावण मास की कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों द्वारा भोजनालयों और स्टॉल्स पर क्यूआर कोड स्टिकर लगाने के आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गंभीर कानूनी सवाल खड़े हो गए हैं।

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह आदेश न केवल संविधान द्वारा दिए गए निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है, बल्कि एक विशेष समुदाय की पहचान और व्यवसाय को लक्षित करने का प्रयास भी है।

इस पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्य सरकारों से एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। पीठ में न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह शामिल थे। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि अगले मंगलवार निर्धारित की है।

याचिका में धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप

याचिका शिक्षाविद अपूर्वानंद झा और अन्य द्वारा दाखिल की गई है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश प्रशासन द्वारा 25 जून को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में यह आदेश दिया गया कि कांवड़ मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों को क्यूआर कोड प्रदर्शित करना अनिवार्य है, ताकि दुकान मालिकों की पहचान को देखा जा सके।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह व्यवस्था धार्मिक और जातिगत प्रोफाइलिंग का साधन बन सकती है, जिस पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुका है।

सरकार की दलील

उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता जतिंदर कुमार सेठी ने अदालत से दो सप्ताह का समय मांगा था, पर याचिकाकर्ता के वकील शादान फरासत ने यह कहकर विरोध किया कि कांवड़ यात्रा अगले 10–12 दिनों में समाप्त हो जाएगी, और समय की संवेदनशीलता के कारण देरी उचित नहीं होगी। कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए केवल एक सप्ताह का समय दिया।

पिछली वर्ष भी दिए गए थे ऐसे निर्देश

पिछले वर्ष भी सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की सरकारों द्वारा जारी समान निर्देशों पर रोक लगाई थी, जिनमें भोजनालयों और स्टॉल्स के मालिकों के नाम, लाइसेंस और कर्मचारियों की जानकारी सार्वजनिक करने को कहा गया था।

कोर्ट ने उस समय इन आदेशों को असंवैधानिक करार दिया था और कहा था कि यह लोगों के संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध है।

कांवड़ यात्रा और धार्मिक संवेदनशीलता

श्रावण मास के दौरान उत्तर भारत में लाखों कांवड़िए गंगा से जल लेकर शिवलिंगों का अभिषेक करते हैं। इस अवधि में कई श्रद्धालु मांसाहार, प्याज और लहसुन से भी परहेज करते हैं।

राज्य सरकारों का कहना है कि यात्रियों को “शुद्ध और भरोसेमंद भोजन” देने के लिए स्टॉल्स की पहचान पारदर्शी होनी चाहिए। लेकिन याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह आदेश वास्तव में विशेष समुदायों को टारगेट करता है।

सुप्रीम कोर्ट अब यह तय करेगा कि धार्मिक आयोजनों के दौरान राज्य सरकारें कितनी हद तक व्यापारियों की पहचान सार्वजनिक करने के लिए बाध्य कर सकती हैं और कहां यह निजता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन बन जाता है। अदालत का फैसला आने वाले समय में इस विषय में एक अहम नज़ीर बन सकता है।

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https://youtu.be/sLJqKTQoUYs?si=06k6f4Iw_HYplboC
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