सांस घुटती जा रही I am suffocating to breathe

सिल्क्यारा, उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 40 मजदूरों के हालात बयां करती जनकवि डा. अतुल शर्मा की ताजातरीन कविता…

डा.अतुल शर्मा

सांस घुटती जा रही है,
आस लुटती जा रही है,
इन सुरंगों मे अंधेरा है,
मौत के साये ने घेरा है।


रास्ते हैं बंद घुटती सांस का जंगल,
एक सदी सा बीतता हर पल,
बंद होती जा रही हैं ये आवाज़ें,
ज़िन्दगी है एक काला जल।
यहाँ पर काला सवेरा है,
इन सुरंगों में अंधेरा है।
मौत के साये ने घेरा है।।

त्रासदी है इन चट्टानों सी,
पर्वतों के पांव उखडे़ हैं।
सांस घुटती जा रही इन मुहानों में,
धड़कनों के द्वार सिकुड़े हैं।
चीख की बाहों ने घेरा है,
इन सुरंगों मे अंधेरा है,
मौत के साये ने घेरा है।।

आस और उम्मीद जारी है,
सांस लेना आज भारी है।
देर होती जा रही पल-पल,
पर्वतों का दर्द जारी है।
उदासियों का घना कोहरा है,
इन सुरंगों में अंधेरा है,
मौत के साये ने घेरा है।।

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