समय से पहले गर्मी की शुरुआत भयानक है। बुरांश इस वर्ष जनवरी माह में ही अपनी आभा जंगलों में छोड़ने लगा, तो जनवरी के दूसरे पखवाड़े से ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं सुनने को मिलने लगीं।
फरवरी के दूसरे पखवाड़े तक यह हाहाकार बढ़ने लगा है। आगे परिणति क्या होगी, यह आगे का समय चक्र ही बताएगा।
इसी बीच रंगों के त्योहार होली के लिए श्रीनगर गढ़वाल में बैठकी होली का प्रथम आयोजन शैलनट नाट्य संस्था की ओर से 23 फरवरी को कटकेश्वर महादेव मंदिर परिसर क्षेत्र में किया गया।

इस होली में जितने सुंदर रंग गीत और होली फाग गाए गए, उतना ही सुंदर और वृहद यह आयोजन तब हो गया, जब श्रीक्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत के संवाहक प्रसिद्ध ढोल वादक शिवलाल जी तथा शैलनट के होल्यार मदनलाल डंगवाल गुरूजी का सम्मान इस मौके पर किया गया।
यह आयोजन इस दृष्टिकोंण से बेहद सुखद रहा कि श्रीनगर की सांस्कृतिक विरासतों विशेष रूप से रामलीला तथा होली गायन के पारंपरिक आयोजनों में शिवलाल जी के सहयोग को प्रमुखता दी गई। सभी संस्कृतिकर्मियों ने इस सम्मान की जरूरत पर जोर भी दिया।
यह सुंदर आयोजन श्रीक्षेत्र श्रीनगर की धरती पर तब आयोजित हुआ, जब पूरे प्रदेश में विधान सभा की कार्रवाही के दौरान अनर्गल शब्दों के प्रयोग, पहाड़ियों के लिए गाली प्रयोग किए जाने पर उत्तराखंडी अपनी उत्तराखंडियत को समझने में जुटे थे।
छोटी-छोटी बातें भी दूरदृष्टि के परिणामस्वरूप बड़े परिवर्तन और बहुआयामी लगने लगती हैं।

श्रीनगर में हुआ यह होली आयोजन शिवलाल जी तथा मदनलाल डंगवाल गुरूजी के सम्मान के साथ ही पारंपरिक रूप से होली आयोजन करते रहे परिवारों की स्मृति का दिवस भी बना।
कटकेश्वर महादेव के उपासक महेश गिरी ने इस आयोजन की रूपरेखा को छोटे से आयोजन से ही विहंगम बना दिया।
विधान सभा में उत्तराखंड के लोगों के हिस्से गाली आना पहली बात नहीं है। हां! यह कहा जा सकता है कि पानी सिर के ऊपर है, लेकिन बीते 24 वर्षों में कितने ही मौके आए, जब अपनी करतूतों से उत्तराखंडियत और उत्तराखंडियों को माननीयों ने ललकारा।

उत्तराखंड के भूतहा गांव इसकी बानगी हैं। यहां की चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं का बद् से बद्त्तर हो जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण। जब स्वास्थ्य होगा, तब सब ठीक रहेगा, ये बिल्कुल अपढ़ व्यक्ति भी किसी को दिलासा देते हुए कह लेता है, लेकिन हमारे राज्य की सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों में भी अपना कमीशन ढूंढ़ती रही। फिर उन्हें शिवलाल जी जैसे साधरण व्यक्तित्व वाले आम पहाड़ी से क्या मतलब?
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