हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि का स्वामी मन्मथम प्रेक्षागृह दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था। ब्रेख्त को याद करते हुए मशहूर नाट्य निर्देशक उर्मिल कुमार थपलियाल द्वारा निर्देशित नाटक ‘हमारे समय में तुम’ का मंचन चल रहा था। पूरे नाटक में जर्मन तानाशाह की दरिंदगी दृष्टिगोचर हो रही थी, इतनी कि रूह कांप उठे।
नाटक का वो मंजर कई बार याद हो आता है। जब चुनाव आते हैं, जब किसी धार्मिक, सामाजिक या राजनैतिक काज में भगदड़ मच जाने की घटना घटित हो जाती है, जब कहीं बाढ़ आने पर हजारों (सरकारी आंकड़ों में एक सैंकड़ा भी नहीं) लोग असमय काल कवलित हो जाते हैं।
जब किसी पुल के निर्माण में मजदूर इसलिए जिंदा दफ्न हो जाते हैं कि उसे बनाने में घटिया इंजीनियरिंग या घटिया सामान उपयोग किया गया हो। जब किसी राजकीय मेडिकल काॅलेज में किसी विशेषज्ञ डाॅक्टर तो छोड़ो सामान्य डाॅक्टर का भी अभाव दिखाई देता हो।
ऐसी ही घटना श्रीनगर गढ़वाल में तब हुई, जब उत्तराखंड के केंद्रीय विवि यानि हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के संस्कृत विभाग के विद्वान प्रो.आशुतोष गुप्ता इलाज के अभाव में दम तोड़ गए, क्योंकि उन्हें राजकीय मेडिकल काॅलेज में एक अदद डाॅक्टर नहीं मिल पाया, जो उनकी गंभीर स्थिति को भांपकर समय से आगाह कर सके।
बीते 31 दिसंबर को चैरास क्षेत्र से विवि के लिए जा रहे डा.गुप्ता की मोटरसाइकिल तब खनन सामग्री ला रहे एक तेज रफ्तार डंपर से जा टकराई। हालांकि डंपर चालक ने ब्रेक लगाकर वाहन रोक दिया था, लेकिन डा.गुप्ता का पेट अपने ही बाइक पर जोर से टकरा गया।
प्रत्यक्षदर्शियों ने उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाने की भी हिमाकत नहीं की। किसी तरह अपने फोन से फोन लगाकर डा.गुप्ता ने ही अपने विद्यार्थी को मौके पर बुलाया।
सुबह करीब 11 बजे श्रीनगर मेडिकल काॅलेज पहुंचे डा.आशुतोष गुप्ता की तमाम जांचों के बाद उन्हें बताया गया कि उनके पैर की उंगली में हेयर फ्रेक्चर है।
लगातार दर्द से कराह रहे डा.गुप्ता की गंभीर समस्या का इलाज करना तो दूर उसकी गंभीरता को आंकने वाला एक अदद डाॅक्टर भी मेडिकल काॅलेज के पास नहीं था, लेकिन उनका शरीर लगातार जवाब दे रहा था।
उनकी इस स्थिति पर उनके इलाज में जुटे जूनियर रेजीडेंट तथा इंटर्न डाॅक्टरों ने दोपहर दो बजे बाद उनके परिजनों को यह सलाह दी कि सीटी स्कैन कराया जाए। सीटी स्कैन तो हुआ, लेकिन उसकी रिपोर्ट श्रीनगर के सैंकड़ों किमी. दूर दिल्ली में बैठे रेडियोलाॅजिस्ट को देनी थी, सो करीब साढ़े चार बजे तक रिपोर्ट आई।
रिपोर्ट से मालूम हुआ कि लिवर के समीप कुछ फ्ल्यूड एकत्रित हुआ है। कोई सर्जन अस्पताल में मौजूद होते, तो संभवतः इस स्थिति की गंभीरता को आंक पाते, लेकिन डा.आशुतोष के परिजनों को उनकी गंभीर स्थिति के लिए किसी भी डाॅक्टर ने आगाह नहीं किया।
रात्रि दस बजे डा.आशुतोष गुप्ता को रेफर किया गया, लेकिन अस्पताल से उनके लिए एक अदद एंबुलेंस की व्यवस्था भी नहीं हो पाई। अंततः किसी तरह एक निजी एंबुलेंस की व्यवस्था कर उन्हें हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट ले जाया गया।
उनकी रिपोर्ट देखते ही डाॅक्टरों ने बताया कि उन्हें गेस्ट्रोसर्जन की आवश्यकता है, जो हिमालय अस्पताल में नहीं हैं। इसके बाद उन्हें इंद्रेश ले जाया गया, वहां भी उन्हें गैस्ट्रो सर्जन न होने से इलाज नहीं मिल पाया। यहां से वे सिनर्जी अस्पताल ले जाए गए, जहां ऑपरेशन हो जाने के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।
उनकी पत्नी गंगा गुप्ता कहती हैं कि अस्पताल में जो अव्यवस्था उन्होंने देखी, उसका अंदाजा भी कभी नहीं लगा सकती। मन से मजबूत, लेकिन पति की याद में सिसकती गंगा कहती हैं कि यदि हमें उनकी गंभीरता का समय से पता चल जाता, तो हम उन्हें बेहतर से बेहतर इलाज देते।
यह घटना तब घटित हुई, जब उत्तराखंड में निकाय चुनावों की रणभेरी बज चुकी थी। डा.आशुतोष गुप्ता के चले जाने का दुख भले ही किसी प्रत्याशी, किसी पार्टी को न हुआ हो, लेकिन एक विद्वान प्रोफेसर का असमय चले जाना पूरे समाज, शिक्षा जगत के लिए शोक का विषय है।
इस हृदयविदारक घटना का अफसोसजनक पहलू यह भी है कि डा.आशुतोष गुप्ता को जो एंबुलेंस गढ़वाल विवि से हासिल होनी चाहिए थी, वह एंबुलेंस विवि के पास भी उपलब्ध नहीं थी।
डा.आशुतोष गुप्ता को रीजनल रिपोर्टर की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि!