जस्टिस बी. आर. गवई होंगे भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश

भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को देश का 52वां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया।

वे वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना के 13 मई को सेवानिवृत्त होने के बाद 14 मई को पदभार ग्रहण करेंगे। जस्टिस गवई का कार्यकाल लगभग छह महीने का होगा, जो 23 नवंबर 2025 को उनकी सेवानिवृत्ति के साथ समाप्त होगा।

यह नियुक्ति भारत के न्यायिक इतिहास में सामाजिक समावेशन की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है। जस्टिस गवई इस पद पर पहुंचने वाले दूसरे अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से आने वाले व्यक्ति हैं। उनसे पहले जस्टिस के. जी. बालकृष्णन ने 2007 से 2010 तक भारत के 37वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया था।

जस्टिस गवई

जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। उनके पिता आर. एस. गवई एक वरिष्ठ राजनेता और बिहार व केरल के राज्यपाल रह चुके हैं।

जस्टिस गवई ने नागपुर विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। 1985 में उन्होंने वकालत शुरू की और नागपुर बेंच में संवैधानिक, सेवा और श्रम कानून से जुड़े मामलों में विशेषज्ञता हासिल की।

जस्टिस गवई को 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। 24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। वे वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं।

भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश

जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश होंगे। उनसे पहले साल 2007 में जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन भारत के मुख्य न्यायाधीश बने थे।

ऐतिहासिक फैसले

अपने सुप्रीम कोर्ट के कार्यकाल में जस्टिस गवई ने कई महत्वपूर्ण और संवैधानिक मामलों में फैसले दिए:

  • नोटबंदी (2016) : जनवरी 2023 में, जस्टिस गवई उस पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच में शामिल थे, जिसने केंद्र सरकार के 8 नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को 4:1 के बहुमत से संवैधानिक ठहराया। इस फैसले ने नोटबंदी की प्रक्रिया और इसके उद्देश्यों (काले धन और नकली मुद्रा पर अंकुश) को वैध माना।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड योजना: 2023 में, जस्टिस गवई पांच जजों वाली बेंच का हिस्सा थे, जिसने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया। इस योजना के तहत राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदा मिलता था, और इस फैसले ने राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया।
  • बुलडोजर कार्रवाई: 2024 में, जस्टिस गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने अवैध निर्माण या दंडात्मक कार्रवाई के नाम पर बुलडोजर से संपत्ति ध्वस्त करने के खिलाफ देशव्यापी दिशानिर्देश जारी किए। फैसले में अनिवार्य नोटिस और 15 दिन के अंतराल की शर्त रखी गई, जिसने कार्यपालिका की मनमानी पर अंकुश लगाया।
  • अनुच्छेद 370 पर फैसला (2023): जस्टिस गवई उस पांच-न्यायाधीशों की पीठ में शामिल थे जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र सरकार के निर्णय को सर्वसम्मति से वैध ठहराया। इस फैसले को आधुनिक भारत के संवैधानिक इतिहास में ऐतिहासिक माना जाता है।
  • राजद्रोह कानून (धारा 124A): उन्होंने एक बेंच में हिस्सा लिया जिसने ब्रिटिश काल के राजद्रोह कानून की संवैधानिकता पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस कानून की समीक्षा करने को कहा, जिससे कानून के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में पहल हुई।
  • समानता और वैज्ञानिक सोच: एक फैसले में जस्टिस गवई ने स्पष्ट किया कि वैज्ञानिक सोच और संविधान में निहित मूल्यों के खिलाफ जाकर किसी धार्मिक आस्था को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। यह फैसला देश की शिक्षा प्रणाली में विवेक और तर्क को बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण था।
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