नंदा की लोकजात यात्रा: माँ नंदा की डोली कैलाश को विदा

भावुक हुए श्रद्धालु, छलछला गयी ध्याणियों की आंखें
संजय चौहान
आखिरकार एक साल के इन्तजार के बाद एक बार फिर से नंदा के जयकारों से पूरे पहाड़ का लोक नंदामय हो गया है। आज से नंदा के मायके में नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा शुरू हो गयी है।

नंदा धाम कुरूड के सिद्ध पीठ मंदिर में श्रद्धालुओं नें नंदा के पौराणिक लोकगीतों और जागर गाकर हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा को हिमालय के लिये विदा किया।

इस अवसर पर दूर दूर से आये श्रद्धालुओं की आंखें छलछला गयी। खासतौर पर ध्याणियां मां नंदा की डोली को कैलाश विदा करते समय फफककर रो पड़ी। आज 23 अगस्त से शुरू नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा 10 सितम्बर को उच्च हिमालयी बुग्यालो में सम्पन्न होगी।

गौरतलब है कि नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा सिद्धपीठ कुरुड मंदिर से शुरू होती है। यहाँ से प्रस्थान कर राजराजेश्वरी बधाण की नंदा डोली बेदनी बुग्याल में, कुरुड दशोली की नंदा डोली बालपाटा बुग्याल और कुरुड बंड भुमियाल की डोली नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी/ अष्टमी के दिन पूजा अर्चना कर, नंदा को समौण भेंट कर लोकजात संपन्न होती है। नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा शुरू होने पर एक बार फिर पूरा सीमांत जनपद चमोली नंदामय हो गया है।

राजजात से भी ज्यादा विस्तारित है वार्षिक लोकजात

सीमांत जनपद चमोली में प्रत्येक साल भादों के महीनें नंदा सप्तमी/ अष्टमी की यात्रा अर्थात नंदा की वार्षिक लोकजात आयोजित होती है।

जनपद के 7 विकासखंडों के 800 से अधिक गांवों व अलकनंदा, बंड पट्टी, बिरही, कल्प गंगा, नंदाकिनी, पिंडर घाटी की सीमा से लगे गांवों के लोग इस लोकोत्सव में शामिल होते हैं। नंदा की ये वार्षिक लोकजात 12 वर्ष में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात से कई मायनों में बेहद बृहद और भब्य होती है।

लोकजात के दौरान गांवों से लेकर डांडी-कांठी माँ नंदा के जागरों से गुंजयमान हो जाती है। साथ ही दांकुडी, झोडा, चांचरी, की सुमधुर लहरियों से माँ नंदा का मायका अलौकिक हो जाता है।

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