महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रदान किया स्वर्ण पदक..
संजय चौहान
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के 11 वें दीक्षांत समारोह में जिन 44 पंजीकृत उपाधिधारक स्वर्ण पदक विजेताओं को महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने डिग्रियां प्रदान की, उसमें उत्तराखण्ड की मांगल गर्ल नंदा सती भी शामिल रहीं। सीमांत जनपद चमोली के पिंडर घाटी के नारायणबगड गांव की बेटी मांगल गर्ल नंदा सती को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा ऑफ आर्ट (संगीत विषय) में गोल्ड मेडल प्राप्त करने पर क्षेत्र में हर्ष की लहर है।
नंदा सती नें गोल्ड मेडल हासिल करके न केवल गढवाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का नाम ऊँचा किया, अपितु पहाड़ की बेटियों के लिए नये प्रतिमान भी स्थापित किया है। मांगल गर्ल नंदा सती ने मास्टर ऑफ आर्ट (संगीत) में गोल्ड मेडल हासिल करके ये संदेश दिया है कि आज पहाड़ की बेटियाँ केवल खेत-खलिहान, घास लकडी और चूल्हा चौके तक ही सीमित नहीं हैं। अब वो हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और सफलता हासिल करने में सक्षम हैं। नंदा सती की माँ और पिताजी इस समारोह का हिस्सा बने
बेटी की सफलता पर खुशी व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी बेटी पर नाज है। नंदा सती ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माँ पिताजी और शिक्षकों को दिया है।
कौन है नंदा सती!
नंदा के पिताजी ब्रह्मानंद सती पंडिताई का कार्य करते हैं जबकि मां गृहणी हैं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर 12 वीं की शिक्षा नंदा ने नारायणबगड से प्राप्त की। हेमवंती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर से स्नातक और संगीत विषय में स्नाकोत्तर की डिग्री हासिल की। 22 साल की छोटी सी उम्र में नंदा सती द्वारा गाये जाने वाले मांगल गीतों और लोकगीतों को सुनकर हर कोई अचंभित हो जाता है। मांगल गीतों की शानदार प्रस्तुति पर उनकी लोक को चरितार्थ करती जादुई आवाज और हारमोनियम पर थिरकती अंगुलियां लोगों को झूमने पर मजबूर कर देती हैं। जिस उम्र में आज की युवा पीढ़ी मोबाइल, मेट्रो और गैजेट की दुनिया में खोई रहती है, उस उम्र में नंदा का अपन लोकसंस्कृति से इतना लगाव उन्हें अलग पंक्ति में खडा करता है। नंदा नें मांगल गीतों के संरक्षण और संवर्धन के जरिये एक नयी लकीर खींची हैं।
नंदा श्रीनगर के साधर्म्यम केंद्र में अन्य बच्चों को हारमोनियम का प्रशिक्षण देती हैं। नंदा सती को स्वर्ण पदक मिलने की खबर जानकर उनका विद्यार्थी रूद्रांश सिल्सवाल चहक उठा और बोल पड़ा- मम्मी! मैं भी एक दिन ऐसे ही पदक पाऊंगा।