- SEBI, NFRA और IBBI ने भी दी जांच को गति
- रिलायंस ग्रुप पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप
देश के प्रमुख उद्योगपतियों में शामिल अनिल अंबानी एक बार फिर कानूनी घेरे में आ गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उन्हें 17,000 करोड़ रुपये के कथित लोन फ्रॉड मामले में तलब किया है। अंबानी को 5 अगस्त को दिल्ली स्थित ED मुख्यालय में पेश होने का निर्देश दिया गया है।
मनी लॉन्ड्रिंग और लोन डायवर्जन की जांच तेज
जानकारी के अनुसार, ED इस पूरे मामले की जांच धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत कर रहा है। बीते सप्ताह एजेंसी ने रिलायंस ग्रुप से जुड़ी करीब 35 जगहों पर छापेमारी भी की थी। अब यह जांच उस बिंदु पर पहुंच चुकी है जहां मुख्य चेहरों से सीधे पूछताछ जरूरी मानी जा रही है।
शेयर बाजार नियामक SEBI ने भी इस केस में अपनी एक विस्तृत रिपोर्ट ED को सौंपी है। रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर (R Infra) ने CLE प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक सहयोगी कंपनी के जरिए 10,000 करोड़ रुपये का कथित वित्तीय हेरफेर किया।
रिपोर्ट में आरोप है कि यह रकम Inter-Corporate Deposit (ICD) के रूप में दिखाई गई, लेकिन असल में इसका इस्तेमाल रिलायंस ग्रुप और प्रमोटर समूह के हितों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया।
SBI और सरकार की सख्ती भी सामने आई
सरकार की ओर से भी सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। संसद में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने हाल ही में बताया कि SBI ने 13 जून 2025 को अनिल अंबानी और उनकी कंपनी Reliance Communications (RCom) को फ्रॉड घोषित कर दिया है।
बैंक ने इस निर्णय की जानकारी RBI को भी 24 जून को दे दी थी। इसके बाद CBI की जांच की संभावनाएं भी प्रबल हो गई हैं।
रिलायंस ग्रुप की प्रतिक्रिया और कानूनी कदम
रिलायंस ग्रुप से जुड़े एक प्रवक्ता ने बताया कि जिस लेन-देन की बात SEBI कर रहा है, उसकी जानकारी 9 फरवरी 2025 को ही सार्वजनिक कर दी गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि वास्तविक रकम 6,500 करोड़ थी, न कि 10,000 करोड़।
यह मामला बॉम्बे हाई कोर्ट में रिकवरी याचिका के रूप में दाखिल किया गया है और एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज की मध्यस्थता में चर्चा भी हो चुकी है।
क्या है CLE प्राइवेट लिमिटेड और ICD का खेल
SEBI की रिपोर्ट के अनुसार, CLE Pvt. Ltd. को ‘रिलेटेड पार्टी’ नहीं बताया गया, जबकि वह रिलायंस ग्रुप से जुड़ी मानी जा रही है। इस वजह से यह संदेह और गहराता है कि लोन का उपयोग एक पारदर्शी तरीके से नहीं हुआ।
ICD (Inter-Corporate Deposit) के नाम पर रकम को इधर-उधर करना, लोन डायवर्जन की गंभीर श्रेणी में आता है और यही ED की जांच का मुख्य केंद्र बन चुका है।

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