गड़बड़ी साबित हुई तो रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 15 सितम्बर को बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (SIR) प्रक्रिया को लेकर कड़ा रुख दिखाया।
अदालत ने कहा कि अगर मतदाता सूची के इस विशेष पुनरीक्षण में कोई भी अवैधता पाई जाती है तो पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाएगा।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में दिया गया आदेश केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अन्य राज्यों में भी लागू होगा।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन और वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट सूची से हटाए गए हैं और यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग नियमों और अपनी ही गाइडलाइंस का पालन करने में असफल रहा है, जिससे लाखों लोगों का मताधिकार प्रभावित हो सकता है।
चुनाव आयोग की सफ़ाई
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत से आग्रह किया कि आयोग को अपनी प्रक्रिया पूरी करने दी जाए।
उनका कहना था कि SIR खत्म होने के बाद ही इस पर सही मूल्यांकन संभव होगा। आयोग ने यह भी भरोसा दिलाया कि सभी कार्यवाही संवैधानिक प्रावधानों और कानून के अनुरूप हो रही है।
आधार कार्ड पर बहस
सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर को दिए अपने आदेश में संशोधन करने से इनकार कर दिया, जिसमें आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता दी गई थी।
अदालत ने स्पष्ट किया कि आधार को केवल पहचान प्रमाण के तौर पर स्वीकार किया जाएगा, न कि नागरिकता के प्रमाण के रूप में।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अन्य दस्तावेज भी जाली हो सकते हैं, इसलिए आधार को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता।
अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को
पीठ ने मामले की अंतिम दलीलें सुनने के लिए 7 अक्टूबर की तारीख तय की है। अदालत ने कहा कि वह किसी भी स्थिति में चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं की वैधता की जांच करेगी और यदि अवैधता साबित हुई तो निश्चित रूप से हस्तक्षेप किया जाएगा।

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