कॉलेजियम उठा सकता है महत्वपूर्ण कदम
भारत में न्यायिक नियुक्ति परिदृश्य के महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उच्च न्यायालय के उन न्यायाधीशों की नियुक्ति को अस्थायी रूप से रोकने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है जो सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों में मौजूदा न्यायाधीशों के करीबी रिश्तेदार हैं।
इसके जरिए हाई कोर्ट से ऐसे नाम ना भेजने को कहा जाएगा। रिश्तेदारों की जगह नए और पहली बार वकील बने लोगों को प्राथमिकता दिए जाने का विचार पेश किया गया है।
इसके अलावा कॉलेजियम ने उन वकीलों और निचली अदालतों में काम करने वाले जजों से बातचीत करना भी चालू की है, जिन्हें हाई कोर्ट में जज बनाया जा सकता है। यह कदम पहली बार कॉलेजियम की तरफ से उठाया गया है।
50 फीसदी जज संबंधी निकले
हाईकोर्ट में नियुक्त होने वाले जज और सुप्रीम कोर्ट आने वाले जजों की पृष्ठभूमि देखने पर यह आरोप सही भी लगता है, क्योंकि अधिकांश जजों के परिवार में पहले से कोई जज रहा होता है।
किसी के पिता जज रहे होते हैं, किसी के चाचा या मामा जज रहे। NJAC मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में ये बात आई थी कि करीब 50 फीसदी हाईकोर्ट जज, सुप्रीम कोर्ट या हाइकोर्ट के किसी जज के संबंधी हैं।
कॉलेजियम सिस्टम
कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज होते हैं। यही पांच लोग मिलकर तय करते हैं कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कौन जज बनेगा। जिन्हें जज बनाना होता है कॉलेजियम उन नामों को सरकार के पास भेजती है।
कॉलेजियम द्वारा भेजी गई सिफारिश को सरकार एक बार ही लौटा सकती है। सरकार कॉलेजियम के द्वारा दूसरी बार भेजी गई सिफारिश को मानने के लिए बाध्य है। मौजूदा कॉलेजियम में सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस बी.आर.गवई, सूर्यकांत, हृषिकेश रॉय और ए.एस.ओका शामिल हैं।