सोनम वांगचुक और अन्य को जंतर-मंतर या अन्य उपयुक्त जगह पर प्रदर्शन की अनुमति देने की मांग संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है।
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दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार, 9 अक्टूबर को पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) और लद्दाख के उनके सहयोगियों को पर्यावरण जागरूकता बढ़ाने और लद्दाख के लिए छठी अनुसूची का दर्जा देने की मांग के लिए जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति देने की मांग पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार से जवाब मांगा और मामले की सुनवाई 22 अक्टूबर को तय की।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए साथ ही एएसजी चेतन शर्मा और सीजीएससी अपूर्व कुरुप भी मौजूद थे। दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व सरकारी वकील (सिविल) संतोष कुमार त्रिपाठी ने किया। याचिकाकर्ता संगठन की ओर से एडवोकेट राजीव मोहन पेश हुए।
दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने आदेश दिया कि “16 अक्टूबर तक जवाब दाखिल किए जाएं। 22 अक्टूबर को सूचीबद्ध करें।”
संगठन 05 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस आयुक्त द्वारा जारी पत्र से व्यथित है, जिसमें जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अनुरोध खारिज कर दिया गया।
याचिका में कहा गया कि इनकार करने से याचिकाकर्ता संगठन के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत भाषण और शांतिपूर्ण सभा करने के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। इसमें कहा गया कि दिल्ली पुलिस शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने का अनुरोध अस्वीकार करने के लिए कोई वैध या उचित आधार प्रदान करने में विफल रही।
30 सितंबर को सिंघू बॉर्डर पर हिरासत में लिए गए
बता दें कि, अपनी मांगों को लेकर सोनम वांगचुक और उनके समर्थक लेह से ‘दिल्ली चलो पदयात्रा’ के तहत दिल्ली गए हैं। उन्हें 30 सितंबर को उस वक्त हिरासत में ले लिया गया जब वे राजधानी के सिंघू बॉर्डर पर दिल्ली में प्रवेश कर रहे थे। हालांकि, प्रदर्शनकारियों को 2 अक्टूबर की रात को दिल्ली पुलिस ने रिहा कर दिया था। दिल्ली चलो पदयात्रा का नेतृत्व लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) कर रही है। इससे पहले सोनम ने आरोप लगाते हुए कहा कि था कि रिहा करने के बाद भी उन्हें लद्दाख भवन में एक तरह से नजरबंद ही रखा गया है।
प्रदर्शनकारियों की मांगे
उल्लेखनीय है कि संविधान की छठी अनुसूची में पूर्वोत्तर के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन के लिए प्रावधान शामिल हैं। यह ऑटोनॉमस काउंसिल की स्थापना करता है जिनके पास इन क्षेत्रों पर स्वतंत्र रूप से शासन करने के लिए विधायी, न्यायिक, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां हैं। प्रदर्शनकारी लद्दाख को भी छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। इलके अलावा वे लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, लद्दाख के लिए लोक सेवा आयोग तथा लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीटों की मांग भी कर रहे हैं।