भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की गिरफ्तारी, पूछताछ और संपत्ति जब्ती जैसी शक्तियों की वैधता की समीक्षा के लिए एक पुनर्गठित तीन-सदस्यीय पीठ का गठन किया है। यह पीठ 2022 में दिए गए उस महत्वपूर्ण फैसले पर पुनर्विचार करेगी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ED की शक्तियों को संवैधानिक बताया था।
जानें क्या है मामला
2022 में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग मामलों की जांच में ED को गिरफ्तारी, पूछताछ और संपत्ति जब्त करने की शक्तियाँ कानूनी और संवैधानिक हैं। लेकिन बाद में उसी फैसले की कुछ महत्वपूर्ण बातों पर पुनर्विचार की जरूरत महसूस की गई, जैसे:
क्या आरोपी को ECIR (Enforcement Case Information Report) की प्रति मिलनी चाहिए? क्या आरोपी को अपनी निर्दोषता साबित करनी होगी, जो भारतीय कानून के विपरीत है?
नई पीठ में शामिल न्यायाधीश
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत
- न्यायमूर्ति उज्जल भूयान
- न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह
पहले न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार इस पीठ का हिस्सा थे, लेकिन उनके सेवानिवृत्त होने के बाद अब नई पीठ बनाई गई है। सुनवाई 7 मई 2025 से शुरू होगी।
यह समीक्षा यह तय करेगी कि ED को मिली शक्तियाँ नागरिकों के मौलिक अधिकारों (विशेष रूप से अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करती हैं या नहीं।
यदि सुप्रीम कोर्ट मौजूदा प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराता है, तो ED की कार्यप्रणाली में बड़े बदलाव आ सकते हैं।

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