राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर नरेंद्र मोदी के उत्तराखंड आने की चर्चाओं के बीच, राज्य के पांचवें धाम के रूप में बनने जा रहे ‘सैन्य धाम’ को लेकर विवाद बढ़ गया है।
अब तक भूमि अधिग्रहण, कार्यादेश और बजट वृद्धि जैसे कई मुद्दे सामने आए हैं, जिससे इस परियोजना पर राजनीतिक एवं सामाजिक दबाव बढ़ा है।
भूमि अधिग्रहण और निजी भूमि का दावा
शिकायतकर्ता एडवोकेट विकेश नेगी ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को पत्र लिखा है कि देहरादून-गुनियाल गाँव में बन रहे सैन्य धाम के लिए वन विभाग की भूमि का उपयोग किया गया है, जो नियमों के तहत स्थानांतरित नहीं की जा सकती।
दूसरी ओर, मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि निजी भूमि के मालिकों ने अधिग्रहण या मुआवजे न मिलने का आरोप लगाते हुए न्यायालय में याचिका दायर की थी।
आरटीआई के माध्यम से एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस परियोजना की प्रारंभिक बजट अनुमान ₹ 48 करोड़ था, जो अब लगभग ₹ 99 करोड़ तक बढ़ गया है।
कारण के रूप में निर्माण में देरी और अतिरिक्त सुविधाएँ जोड़ने को बताया गया है।
न्यायालय की स्थगन प्रक्रिया
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जून 2024 में इस परियोजना के संबंध में एक याचिका पर निर्माण को अस्थायी रूप से रोक दिया था कि निजी भूमि पर अनुमति या मुआवजा नहीं हुआ है। बाद में अगस्त 2024 में रोक हटा दी गई थी।
सैनिक कल्याण विभाग, उत्तराखंड के अधिकारियों का कहना है कि धाम जिस भूमि पर बनाया जा रहा है वह उनके विभाग की है और पूरे निर्माण में आवश्यक अनुमति ली गई है।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि बजट वृद्धि नए सुविधाओं व डिजाइन बदलाव के कारण हुई है न कि अनियमितता के कारण।
परियोजना का महत्व और पृष्ठभूमि
- यह धाम गुनियाल गाँव (मसूरी रोड, देहरादून) में लगभग 50 बीघा भूमि पर बनाया जा रहा है।
- इसे राज्य की “वीरभूमि” छवि से जोड़कर देखा जा रहा है क्योंकि उत्तराखंड से भारतीय सेना में बड़ी संख्या में जवान जाते हैं।
- पहले इसे 2019 में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित किया गया था और 15 दिसंबर 2021 को राजनाथ सिंह ने भूमि पूजन किया था।












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